ख़ुश रहकर दूसरों पर एहसान करेंगे?
निधि नारंग
आप ख़ुश रहेंगे, तो उसका कुछ अंश आस-पास रहने वाले परिजनों, रिश्तेदारों और दोस्तों को भी मिलेगा। और उनके ख़ुश रहने पर कुछ ख़ुशी आपके हिस्से भी आएगी। यह कोरा उपदेश नहीं है, बल्कि ख़ुशी के इस प्रसार को पैमाने पर मापा जा चुका है..
शी का संचार दूरी पर निर्भर करता है। करीब 1.6 किमी के दायरे में रहने वाले दोस्तों की ख़ुशी एक-दूसरे को ज्यादा प्रभावित करती है। इतनी दूरी के भीतर रहने वाला दोस्त अगर प्रसन्न है, तो 25 प्रतिशत तक संभावना रहती है कि आप भी बिना कारण ख़ुशी महसूस करें। यानी आप अपने क़रीबियों के जितने क़रीब होंगे, अपनी ख़ुशी उतनी ज्यादा बांट सकते हैं और बढ़ा भी सकते हैं।
जब कोई व्यक्ति ख़ुश होता है, तो उसके मित्र के ख़ुश होने की संभावना लगभग 25 फ़ीसदी तक बढ़ जाती है। और फिर श्रंखला चल पड़ती है। उस मित्र के मित्र के ख़ुश होने की संभावना लगभग 10 प्रतिशत बढ़ जाती है और उसके भी मित्र के ख़ुश होने की संभावना भी क़रीब 5.6 फ़ीसदी तक बढ़ जाती है।
हाल में हुए एक शोध से यह पता चला है कि आप अकेले ख़ुश नहीं हो सकते। 20 सालों तक क़रीब 5,000 लोगों पर किए गए इस शोध के मुताबिक़, अगर किसी समूह का एक सदस्य ख़ुश है, तो बाक़ी के सदस्यों में भी उसकी ख़ुशी का संचार हो जाता है। यानी लोगों की ख़ुशियां उनसे जुड़े लोगों पर भी निर्भर करती हैं।
माना जाता है कि जो इंसान जितना अधिक ख़ुश रहता है, वह उतना स्वस्थ भी होता है। इसलिए अगर आप भी सेहतमंद रहना चाहते हैं, तो जरूरी है कि आपके क़रीबी भी ख़ुश रहें। आपकी ख़ुशी केवल आपसे ही नहीं है, बल्कि यह आपके परिवार, दोस्तों, उनके दोस्तों या उनके भी दोस्तों के ख़ुश होने की वजह से भी हो सकती है। कई बार किसी ऐसे इंसान की वजह से भी आपका मूड काफी अच्छा हो सकता है, जिससे आप मिले भी नहीं हैं।
अगर पड़ोसी के साथ आपका कोई गहरा रिश्ता नहीं है, लेकिन मुलाक़ात ख़ूब होती रहती है, तो आपकी ख़ुशी उनसे काफी हद तक जुड़ जाएगी। मगर, ऑफ़िस में साथ काम करने वाले लोगों की ख़ुशी शायद आपको ज्यादा प्रभावित न करे, क्योंकि वहां भावनात्मक रिश्ता होने की बजाय सामाजिक और व्यावसायिक नाता होने के चलते ख़ुशी का संचार उतना नहीं हो पाता है। इसके अलावा, समय और भौगोलिक दूरियों के साथ भावनात्मक रिश्ता कम होता जाता है। अगर आप किसी व्यक्ति के साथ ज्यादा संपर्क नहीं रख पाते हैं, तो उसकी ख़ुशी आपके लिए ख़ास मायने नहीं रखेगी।
उक्त शोध के तहत चिकित्सा समाजविज्ञानी निकोलस क्रि स्टॉकीस और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञानी जेम्स फॉवलर ने 4,739 लोगों के सोशल नेटवर्क के साथ कॉर्डियोवस्कुलर (हृदय व धमनियों संबंधी) स्टडी की। इससे जुड़े लोगों के क़रीबी रिश्तेदारों, परिजनों और पड़ोसियों की जानकारी भी ली गई। इस तरहे 50,000 से भी ज्यादा लोगों के सामाजिक संबंध शोधकर्ताओं को मिले।
लोगों की ख़ुशी को जानने के लिए 1983 से लेकर 2003 तक उनसे लगातार पूछा गया कि ये चार बयान उन पर कितना सटीक बैठते हैं- ‘मैं भविष्य को लेकर आशावान महसूस करता था’, ‘मैं ख़ुश था’, ‘मैंने जीवन का आनंद उठाया’ और ‘मुझे लगा कि मैं बाक़ी लोगों की तरह अच्छा था’। 60 फ़ीसदी लोगों ने इन चारों वाक्यों पर सबसे ज्यादा अंक पाए और उन्हें ख़ुशहाल माना गया, जबकि बाक़ी को दुखी।
हाल में मिले ये परिणाम, मानवीय भावनाओं के पैदा होने और उनके अप्रत्यक्ष प्रभाव और संचार पर पहले किए गए शोध को भी पुष्ट करते हैं। इस शोध का सबसे महत्वपूर्ण पहलू तो यह है कि ख़ुशी से न केवल मानव का दुख-दर्द कम होता है, बल्कि उसके हृदय संबंधी समस्याएं भी कम हो जाती है। ख़ुद ख़ुश रहकर आप खुशियों का संचार करके एक स्वस्थ समाज के निर्माण में योगदान दे सकते हैं।
बहरहाल, इसका मतलब यह नहीं है कि आप अपने दुखी दोस्तों से कोई मतलब न रखें। डॉ. फॉवलर कहते हैं कि दुख का भी संचार होता है, लेकिन ख़ुशी की तरह नहीं। उनकी टीम अभी दुख और एकाकीपन के प्रभाव पर शोध में लगी हुई है।
अगर रहना हो ख़ुश तो..
दोस्तों के चयन में सावधानी रखें।
जिस दोस्त के साथ ज्यादा समय बिताना हो, उसे चुनें और मस्त लोगों के साथ रहें।
जो समूह आपको प्रोत्साहित करता हो, उसके साथ नेटवर्क बढ़ाएं।
इस बात का ध्यान रखें कि आपकी ख़ुशी आपके आस-पास के कई लोगों को प्रभावित करती है। एक सामाजिक प्राणी की तरह रहें।
निधि नारंग
आप ख़ुश रहेंगे, तो उसका कुछ अंश आस-पास रहने वाले परिजनों, रिश्तेदारों और दोस्तों को भी मिलेगा। और उनके ख़ुश रहने पर कुछ ख़ुशी आपके हिस्से भी आएगी। यह कोरा उपदेश नहीं है, बल्कि ख़ुशी के इस प्रसार को पैमाने पर मापा जा चुका है..
शी का संचार दूरी पर निर्भर करता है। करीब 1.6 किमी के दायरे में रहने वाले दोस्तों की ख़ुशी एक-दूसरे को ज्यादा प्रभावित करती है। इतनी दूरी के भीतर रहने वाला दोस्त अगर प्रसन्न है, तो 25 प्रतिशत तक संभावना रहती है कि आप भी बिना कारण ख़ुशी महसूस करें। यानी आप अपने क़रीबियों के जितने क़रीब होंगे, अपनी ख़ुशी उतनी ज्यादा बांट सकते हैं और बढ़ा भी सकते हैं।
जब कोई व्यक्ति ख़ुश होता है, तो उसके मित्र के ख़ुश होने की संभावना लगभग 25 फ़ीसदी तक बढ़ जाती है। और फिर श्रंखला चल पड़ती है। उस मित्र के मित्र के ख़ुश होने की संभावना लगभग 10 प्रतिशत बढ़ जाती है और उसके भी मित्र के ख़ुश होने की संभावना भी क़रीब 5.6 फ़ीसदी तक बढ़ जाती है।
हाल में हुए एक शोध से यह पता चला है कि आप अकेले ख़ुश नहीं हो सकते। 20 सालों तक क़रीब 5,000 लोगों पर किए गए इस शोध के मुताबिक़, अगर किसी समूह का एक सदस्य ख़ुश है, तो बाक़ी के सदस्यों में भी उसकी ख़ुशी का संचार हो जाता है। यानी लोगों की ख़ुशियां उनसे जुड़े लोगों पर भी निर्भर करती हैं।
माना जाता है कि जो इंसान जितना अधिक ख़ुश रहता है, वह उतना स्वस्थ भी होता है। इसलिए अगर आप भी सेहतमंद रहना चाहते हैं, तो जरूरी है कि आपके क़रीबी भी ख़ुश रहें। आपकी ख़ुशी केवल आपसे ही नहीं है, बल्कि यह आपके परिवार, दोस्तों, उनके दोस्तों या उनके भी दोस्तों के ख़ुश होने की वजह से भी हो सकती है। कई बार किसी ऐसे इंसान की वजह से भी आपका मूड काफी अच्छा हो सकता है, जिससे आप मिले भी नहीं हैं।
अगर पड़ोसी के साथ आपका कोई गहरा रिश्ता नहीं है, लेकिन मुलाक़ात ख़ूब होती रहती है, तो आपकी ख़ुशी उनसे काफी हद तक जुड़ जाएगी। मगर, ऑफ़िस में साथ काम करने वाले लोगों की ख़ुशी शायद आपको ज्यादा प्रभावित न करे, क्योंकि वहां भावनात्मक रिश्ता होने की बजाय सामाजिक और व्यावसायिक नाता होने के चलते ख़ुशी का संचार उतना नहीं हो पाता है। इसके अलावा, समय और भौगोलिक दूरियों के साथ भावनात्मक रिश्ता कम होता जाता है। अगर आप किसी व्यक्ति के साथ ज्यादा संपर्क नहीं रख पाते हैं, तो उसकी ख़ुशी आपके लिए ख़ास मायने नहीं रखेगी।
उक्त शोध के तहत चिकित्सा समाजविज्ञानी निकोलस क्रि स्टॉकीस और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञानी जेम्स फॉवलर ने 4,739 लोगों के सोशल नेटवर्क के साथ कॉर्डियोवस्कुलर (हृदय व धमनियों संबंधी) स्टडी की। इससे जुड़े लोगों के क़रीबी रिश्तेदारों, परिजनों और पड़ोसियों की जानकारी भी ली गई। इस तरहे 50,000 से भी ज्यादा लोगों के सामाजिक संबंध शोधकर्ताओं को मिले।
लोगों की ख़ुशी को जानने के लिए 1983 से लेकर 2003 तक उनसे लगातार पूछा गया कि ये चार बयान उन पर कितना सटीक बैठते हैं- ‘मैं भविष्य को लेकर आशावान महसूस करता था’, ‘मैं ख़ुश था’, ‘मैंने जीवन का आनंद उठाया’ और ‘मुझे लगा कि मैं बाक़ी लोगों की तरह अच्छा था’। 60 फ़ीसदी लोगों ने इन चारों वाक्यों पर सबसे ज्यादा अंक पाए और उन्हें ख़ुशहाल माना गया, जबकि बाक़ी को दुखी।
हाल में मिले ये परिणाम, मानवीय भावनाओं के पैदा होने और उनके अप्रत्यक्ष प्रभाव और संचार पर पहले किए गए शोध को भी पुष्ट करते हैं। इस शोध का सबसे महत्वपूर्ण पहलू तो यह है कि ख़ुशी से न केवल मानव का दुख-दर्द कम होता है, बल्कि उसके हृदय संबंधी समस्याएं भी कम हो जाती है। ख़ुद ख़ुश रहकर आप खुशियों का संचार करके एक स्वस्थ समाज के निर्माण में योगदान दे सकते हैं।
बहरहाल, इसका मतलब यह नहीं है कि आप अपने दुखी दोस्तों से कोई मतलब न रखें। डॉ. फॉवलर कहते हैं कि दुख का भी संचार होता है, लेकिन ख़ुशी की तरह नहीं। उनकी टीम अभी दुख और एकाकीपन के प्रभाव पर शोध में लगी हुई है।
अगर रहना हो ख़ुश तो..
दोस्तों के चयन में सावधानी रखें।
जिस दोस्त के साथ ज्यादा समय बिताना हो, उसे चुनें और मस्त लोगों के साथ रहें।
जो समूह आपको प्रोत्साहित करता हो, उसके साथ नेटवर्क बढ़ाएं।
इस बात का ध्यान रखें कि आपकी ख़ुशी आपके आस-पास के कई लोगों को प्रभावित करती है। एक सामाजिक प्राणी की तरह रहें।
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