शनिवार, 28 अगस्त 2010

श्रीकृष्ण से सीखें कुशल प्रबंधन के गुर


भगवान श्री कृष्ण के जन्म से लेकर आज तक युगों का अन्तर है। किंतु श्रीकृष्ण के चरित्र और व्यवहार में जीवन को जीने के जो सूत्र छुपे हैं, वह आज भी उतने ही मायने रखते हैं, जितने कृष्ण के युग द्वापर में थे। इसलिए वह भगवान ही नहीं लोकनायक के रुप में भी भक्तों को प्रिय हैं।
श्रीकृष्ण के ब्रज में बीते बचपन से लेकर कुरुक्षेत्र के मैदान तक के जीवन पर व्यावहारिक दृष्टि से विचार करें तो यही पाते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण एक कुशल प्रबंधक और रणनीतिकार थे। आज भी जीवन के हर क्षेत्र में उनकी नीतियों का सही उपयोग सफलता का कारण बन सकता है।
श्रीकृष्ण की सफल रणनीति का सबसे बड़ा सूत्र है - कुशलता और सबलता। सफलता के लिए जरुरी है - किसी भी क्षेत्र या विषय का ज्ञान पाकर दक्ष और कुशल बने। इसके साथ व्यावहारिक सोच रखें। यही योग्यता आपकी सबसे बड़ी ताकत होगी, जो आपको जिंदगी की दौड़ में आगे तक ले जाएगी।
श्रीकृष्ण के जीवन में देखें तो पाते हैं कि वह विष्णु अवतार थे यानि वह सबल और कुशल तो थे ही किंतु बचपन में ही उन्होंने उन्होंने बृज में आए हर संकट को न केवल इस बल के सही उपयोग से टाला बल्कि इन संकटों से उबरने के लिए उन्होंने मानवीय रुप में व्यावहारिक संदेश भी ब्रजवासियों को दिए। चाहे वह कालिया दमन हो, इंद्र का अहं चूर करना हो या कंस द्वारा भेजी गई पूतना और दूसरे दानवों का वध।
श्रीकृष्ण ने न केवल हर विपत्ति से मुक्ति दिलाई बल्कि हर बार ब्रजवासियों को उनकी शक्ति, कुशलता और योग्यता का एहसास कराया और उनके आत्मविश्वास को जगाया। यही एक गुणी, सफल और कुशल प्रबंधक की पहचान है।

ऐसे मनाएं बालकृष्ण का बर्थ-डे
भाद्रपद कृष्ण अष्टमी (इस बार १ सितंबर) पर भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्सव मनाने के लिए कृष्ण भक्त अपनी श्रद्धा और आस्था प्रगट करने के लिए घर और मंदिरों में सजावट, रोशनी के साथ पूजा और आरती करते हैं। जन्मोत्सव का हर्ष और उत्साह खासतौर पर भगवान के जन्म समय अर्द्धरात्रि में देखते ही बनता है। आप भी श्रीकृष्ण के जन्म की इस रात में भक्ति रस में डूब सकते हैं। यहां बताई जा रही है कि किस तरह होना चाहिए, श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की सुबह से लेकर रात तक की तैयारी और उत्सव -

- सुबह से ही श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और व्रत का संकल्प और पूजा के समय केले के पत्तों से खंभे और आम या अशोक के पत्तों से घर के दरवाजे सजाएं।
- रात्रि को बारह बजे गर्भ से जन्म लेने के प्रतीक रुप में ककड़ी फोड़कर भगवान् श्री कृष्ण का जन्म कराएं और जन्मोत्सव मनायें।
- अर्द्धरात्रि में बालकृष्ण की मूर्ति या शालग्राम की प्रतिमा का विधि-विधान से पंचामृत स्नान करें।
- स्वयं या किसी योग्य ब्राह्मण से बालकृष्ण का षोडशोपचार पूजन करें।
- पूजा में श्रीकृष्ण को पोशाक और आभुषण पहनाएं। बालकृष्ण को झूले में बैठाएं।
- जन्मोत्सव के बाद धूप, दीप, कर्पूर जलाकर कर एक सुर में भगवान की आरती करें और नैवेद्य में मक्खन जरुर चढ़ाएं।
- भगवान के भोग में एक रोचक बात यह है कि इसमें भगवान श्री कृष्ण के साथ माता देवकी और यशोदा के लिए भी भोग लगाया जाता है। जिस तरह सामान्यत: प्रसूता को जो पदार्थ खिलाए जाते हैं, जिनमें अजवायन से बनी मिठाई, नारियल, खजूर, अनार, धनिये की पंजेरी, नारियल की मिठाई और तरह-तरह के मेवे के प्रसाद का भोग लगावें।
- जन्म के बाद भगवान की मूर्ति के सामने बैठकर भजन-कीर्तन कर जन्मोत्सव का आनंद मनाएं।
- प्रसाद बांटें। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन प्रसाद और चरणामृत ग्रहण करने से मात्र से ही सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है।


यह है श्रीकृष्ण की 16 कलाओं का रहस्य

हम अक्सर सुनते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण 16 कलाओं से पूर्ण थे। किंतु इन कलाओं के पीछे क्या तथ्य हैं, यह बहुत कम लोगों को मालूम है। यहां हम आपको बता रहे हैं श्रीकृष्ण की इन्हीं 16 कलाओं का रहस्य-
भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास की कृष्णपक्ष अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में रात को 12 बजे वृषभ लग्न में हुआ। अष्टमी के चंद्रमा को पूर्ण बली कहा गया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चंद्रमा की 16 कलाएं होती हैं जो प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक दिखाई देती है। रोहिणी चंद्रमा की सबसे प्रिय पत्नी है। इस काल में चंद्रमा उच्च पर होता है। ऐसे ही काल में चंद्रवंशी होने के कारण भगवान श्रीकृष्ण चंद्रवंश के संपूर्ण प्रतिनिधि के रूप में 16 कलाओं से युक्त कहलाएं।
(sabhar dainik bhaskar)