सोमवार, 11 अक्तूबर 2010

भागवत: 90: जो भी काम करें, होश में करें


सुविधाएं होना बहुत अच्छी बात है, लेकिन सुविधाओं पर टिक कर काम नहीं चलेगा। पांडवों को पांडव बनाया क्योंकि होश में थीं माता कुंती।अब भागवत में तीसरे दिन के प्रसंगों में प्रवेश करें जो प्रसंग इसमें आएंगे वो प्रसंग बार-बार हमसे कह रहे हैं कि जो भी काम करना, होश में करना। आइए अब हम प्रवेश कर रहे हैं पांचवें स्कंध में। हमने पढ़ा था कि भरतजी की माया टिकी रही, भरतजी जंगल में गए, भरतजी को मृगबाल से मोह हुआ। भरतजी मृग बने और मृगयोनी को भी उन्होंने त्यागा और वो एक ब्राह्मण के घर में जड़भरत के रूप में जन्में।
भरतजी को अपना पूर्व जन्म याद था तो उन्होंने सोचा कि पिछले जन्म में मैं एक हिरण में उलझ गया, तो मुझे हिरण बनना पड़ा। इस जन्म में मैं इतना सावधान रहूंगा कि मनुष्यों में भी नहीं उलझूंगा तो पूरा ही वैराग्य लेकर पैदा हो गए और जिस घर में पैदा हुए उसमें भाइयों में सबसे छोटे थे। पिता ने बहुत प्रयास किया कि ये बच्चा पढ़ जाए पर वो कुछ नहीं करते, बैठे रहते। भरतजी कुछ भी काम इच्छा से नहीं करते इसलिए उनका नाम पड़ा जड़भरत। उन्हें काम न करते देख उनके भाइयों ने कहा या तो आप काम करिए या हमारे घर से विदा हो जाइए।
जड़भरत तो इतने निर्लिप्त हो गए कि उन्होंने कहा कि यहां रह ही कौन रहा है। वह चल दिए और जाकर एक मंदिर के बाहर बैठ गए। उसी समय वहां एक भील राजा के यहां संतान नहीं हो रही थी। उसको नरबलि देना था तो उन्होंने अपने लोगों से कहा कि पकड़कर लाओ किसी को। वो लोग निकले, जड़भरत से उन्होंने कहा चलते हो। जड़भरत ने कहा चलते हैं। उन्होंने कहा नरबलि देना है। उन्होंने कहा चल चलेंगे। आश्चर्य हुआ सैनिकों को। किसी से बोलो नरबलि देना है तो उल्टा भाग जाए और ये कह रहा है चलो। जड़भरत चले गए भीलों के साथ।
क्रमश:...

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