गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

क्यों मानते हैं आग को पवित्र?



हमारे सांस्कृतिक अनुष्ठानों में आग को बड़ा ही पवित्र माना जाता है। सात जन्मों के पवित्र बंधन में भी आग को ही साक्षी माना जाता है।
हिन्दू संस्कृति के आधार स्तम्भ ऋग्वेद के पहले ही भाग में आग को देवता माना गया है। एक ओर तो आग को बड़ा ही पवित्र मानते हैं वहीं इसे खतरनाक भी माना जाता है।
इसके तेज को सह पाना हर किसी के बूते की बात नहीं। फिर भी क्या कारण है कि आग को इतना पवित्र माना जाता है?
आग को अग्रि देव का ही रूप माना जाता है। अग्रिदेव ही आलोक अर्थात उजाले का प्रतीक हैं, ऊर्जा के स्रोत हैं और सृष्टि को शक्ति संपन्न करने वाले हैं।
मानव सभ्यता मे भी आग के कारण ही विकास ने रफ्तार पकड़ी। सृष्टि के पांच मुख्य तत्वों में भी आग का प्रमुख स्थान है। यज्ञ में अग्रि की आहुति देने का पावन विधान प्राचीनकाल से ही प्रचलित है।
वैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो जहां आग को जलाया जाता है वहां उसके तेज के कारण वातावरण में मौजूद विषाणु मर जाते हैं। इससे वातावरण पवित्र होता है।
आज भी गांव में मच्छर भगाने के लिए आग का ही सहारा लिया जाता है। किसी भी प्रकार के कर्मकांड में तो अग्रि का बड़ा ही महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसके बिना तो कोई भी अनुष्ठान पूरा नहीं होता।
इन्हीं विशेषताओं के कारण ही अग्रि को पवित्र माना जाता है।

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