बुधवार, 13 अक्तूबर 2010

खूब सारी किताबें पढ़ें,

बताएं क्या पढ़ें क्यों पढ़ें
खूब सारी किताबें पढ़ें, जो बेहतर लगे उसको पढ़ने के लिए सबको प्रेरित करें और जो स्तरहीन है उससे लोगों को बचाएं। यही है क्रिटिक यानी आलोचक की जिम्मेदारी।
आ म राय है कि पढ़ने में लोगों की रुचि घटती जा रही है। क्या आप इस धारणा को बदलने में अपना योगदान देना चाहते हैं। साथ में यह भी बता सकते हैं कि कौन सी किताब ‘बेस्ट सेलर’ होगी और कौन सी किस प्रतिष्ठित साहित्य पुरस्कार की दौड़ में आगे रहेगी। जरूरी नहीं कि जैसा आप कहें वैसा ही हो, लेकिन जनमत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका तो निभा ही सकते हैं। इसके लिए आपको क्रिटिक यानी आलोचक बनना होगा।
रुचि की बात है
आलोचक को बहुत सी किताबें पढ़नी होती हैं। विविध विषयों और शैली वाली होती हैं। इसलिए सबसे पहले तो साहित्यिक रूझान होना चाहिए। फिर आलोचनात्मक दृष्टि विकसित करने के लिए विशेष प्रशिक्षण से भी गुजरना पड़ेगा। इसके लिए पढ़ना और खूब पढ़ना ही विकल्प है। रचनाकारों या साहित्यकारों की अपनी विशेष शैली या विधा हो सकती है- उपन्यास, कहानी, कविता, व्यंग्य, रिपोर्ताज आदि, लेकिन आलोचक को सभी तरह का साहित्य पढ़ना पड़ता है। उन्हें साहित्य की गहरी समझ के साथ बाजार के बारे में पता होना भी जरूरी है।
कहां है रोजगार
समाचार पत्र-पत्रिकाओं और वेबसाइट में आलोचकों के कॉलम होते हैं। कई बड़े अखबार कला सेक्शन में पुस्तक समीक्षा छापते हैं। बड़ी पत्रिकाओं में भी यह नियमित स्तंभ होता है। ऑनलाइन पब्लिकेशन में समीक्षा तत्काल मिलती है और एक से ज्यादा भी होती हैं। कुछ आलोचक फ्रीलांस तौर पर काम करते हैं। वह कई प्रकाशनों के लिए लिखते हैं और प्रति समीक्षा के अनुसार पैसे लेते हैं। पत्र-पत्रिकाओं में आलोचकों को स्थायी नौकरी पर भी रखा जाता है।
रोजगार के मौके
आलोचक को लिखने के मौके तो भरपूर हैं, लेकिन ऐसा स्थायी रोजगार, जिससे वह अपनी रोजी-रोटी कमा सके, कम ही मिलते हैं। अक्सर शुरूआत पत्रकार के तौर पर करनी पड़ती है। यह साबित करना पड़ता है आपकी लेखन शैली बढ़िया है और साहित्य की गहरी समझ भी है। तभी साहित्य समीक्षा करने का मौका मिल सकता है।
शिक्षा और प्रशिक्षण
आलोचक को पढ़ने के प्रति नशा जैसा होना चाहिए। जब भी मौका मिले जैसे भी मौका मिले पढ़ते रहना चाहिए। बड़े साहित्यकारों की श्रेष्ठ रचनाओं को पढ़कर समझ बढ़ानी चाहिए। क्लैसिक्स पर खुद की स्वतंत्र राय होनी चाहिए। आलोचना की समझ विकसित करने का यही सर्वश्रेष्ठ तरीका है। लेकिन सिर्फ नामचीन और पुराने साहित्यकारों तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए। सभी ओर लगातार नया साहित्य रचा जा रहा है, उस पर भी गहरी नजर चाहिए। हर रचना को गहरे सोच-विचार के बाद अपनी ओर से नंबर जरूर देने चाहिए। उसका आधार भी ठोस होना चाहिए।
कुछ आलोचक साहित्य और पत्रकारिता में डिग्री लिए होते हैं। हालांकि डिग्री तो सिर्फ एक आधार है, मूल बात है लगातार समझ बढ़ाना और परिदृश्य पर गहरी नजर रखना।
अच्छा है पैसा
आलोचक को भी अन्य पत्रकारों के समान ही वेतन मिलता है। शुरूआत 10 से 15 हजार रुपए महीने से हो सकती है। बाद में अनुभव और नाम के अनुसार पैसा बढ़ता जाता है। कोई भी नामी क्रिटिक 6 से 8 लाख रुपए का सालाना वेतन आसानी से प्राप्त कर सकता है। हालांकि इससे भी बढ़ा सुख है अपनी रुचि का काम करना। भरपूर पढ़ना, उस पर अपनी राय देकर हजारों, लाखों पाठकों का जनमानस बनाना।

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