गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

भागवत: ९३: स्वर्ग -नर्क का भेद बताती है भागवत



परीक्षितजी ने शुकदेव भगवान से प्रश्न पूछा कि आप मुझे बताइए कि स्वर्ग-नर्क क्या होता है? पृथ्वी का खगोल-भूगोल क्या होता है? ये सब आप मुझे बताइए। अचानक उन्होंने ये प्रश्न पूछा। उसके पीछे भी एक तर्क था परीक्षित का। मैंने मनुष्य के मन को, मनोविज्ञान को कई पात्रों से सुना आगे भी सुनूंगा पर अब मैं प्रकृति और मनुष्य को जोडऩा चाहता हूं।हम लोग हिल स्टेशन क्यों जाते हैं अच्छा दृश्य दिखे। प्रकृति हमारी मनोवृत्ति को क्यों बदल देती है क्योंकि ये शरीर पंचतत्व से बना है जिससे प्रकृति बनी है।

हमारी देह में पांच तत्व हैं और वही तत्व बाहर हैं और उसका और हमारा संतुलन बना रहा तब तक हम स्वस्थ भी हैं और शांत भी हैं और उसका और हमारा संतुलन बिगड़ा कि हम गए काम से।शुकदेवजी परीक्षित को बता रहे हैं और यहीं से शुकदेवजी छठवें स्कंध में प्रवेश कर रहे हैं। पांचवां स्कंध यहां आकर समाप्त होता है।आइए यहीं से छठे स्कंध में ले चल रहे हैं। शुकदेवजी ने परीक्षित से कहा कि नर्क से कैसे बचें? ये बड़ा ज्वलंत प्रश्न है। नर्क देखा किसी ने नहीं है, पर नर्क का नाम सुनकर आदमी को बड़ा कष्ट होता है। अगर किसी को ये आस्था है कि मरने के बाद स्वर्ग और नर्क मिलता है और नर्क में मनुष्य को दंड मिलता है तो हम भारतीय लोग तो मानकर ही चलते हैं कि भैया अच्छे काम करो नहीं तो नर्क में जाओगे बोलते हैं ऐसा। कभी-कभी उपद्रव हो जाए तो बोलते हैं क्या नर्क बना दिया है।
नर्क का मतलब है नकरात्मक स्थितियां। वो जो स्वर्ग है ऊपर है और नर्क नीचे है। आपको तो ज्ञात ही होगा कि स्वर्ग की भौगोलिक स्थिति ऊपर है और नर्क नीचे है पाताल में। ये तो भौगोलिक स्थिति है भागवत कह रही है, शास्त्र कह रहे हैं, पुराण कह रहे हैं। पर समझने की बात यह है कि जब-जब भी आप ऐसा काम करें कि आप नीचे गिर जाएं, समझ लीजिए कि आप नर्क में हैं और कहीं ऊपर उठ जाएं तो समझ लीजिए कि स्वर्ग में है बस यही स्वर्ग-नर्क है।

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