बुधवार, 27 अक्तूबर 2010

उदयपुर: यहां आज भी राजसी वैभव दिखता है

भारत में राज सिंहासन का काल यहां के अद्भुत वैभव को प्रकट करता है। आज भी इस काल के अवशेष इतिहास और पौराणिक महत्व को दुनिया के समक्ष पेश करते हैं।
ऐसा ही एक स्थान है- उदयपुर।

उदयपुर महाराणा प्रताप की निवास-भूमि रही है। यहां महाराणा प्रताप का खड्ग कवच, भाला तथा अन्य शस्त्रास्त्र सुरक्षित हैं। महाराणा के प्रिय अश्व चेतक की जीन यहां हैं और इन सबसे महत्वपूर्ण है बाप्पा रावल का खड्ग, जो भगवान एकलिंग से प्राप्त हुआ था।
उदयपुर राजस्थान का प्रसिद्ध एवं ऐतिहासिक नगर है तथा मेवाड़ के राजाओं की राजधानी रह चुका है। यह वीर तीर्थ है, सती-तीर्थ है और भगवत-तीर्थ भी है।
उदयपुर से कुछ ही दूर हल्दीघाटी की प्रसिद्ध युद्ध-स्थली है। उस वीर-रक्तरंजित भूमि के नाम से तो इतिहास का प्रत्येक जानकार परिचित है। उदयपुर से पश्चिम झील के किनारे महासती स्थान है, यहां सती हुई महारानियों की छतरियां हैं।
उदयपुर के राजप्रसाद के रनिवास की ड्योढ़ी में श्रीपीताम्बररायजी के मंदिर में मीराबाई के उपास्य श्रीगिरिधरलालजी की मूर्ति विराजित है। निम्बार्क-वैष्णवसम्प्रदाय का उदयपुर में मुख्य स्थान है।
यहां श्रीबाईजीराज-कुण्ड पर श्रीनवनीतरायजी का मंदिर है। शहर में श्रीजगन्नाथजी का सुंदर और विशाल मंदिर है। उसके समीप ही वल्लभ-संप्रदाय के तीन और मंदिर हैं।
कैसे पहुंचे- पश्चिम-रेलवे की अजमेर-खण्डवा लाइन पर चित्तौडग़ढ़ से एक लाइन उदयपुर गयी है। यहां सभी गाडिय़ां रुकती हैं।
राजस्थान के लगभग हर शहर से उदयपुर के लिए आसानी से बसें मिल जाती हैं।

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