गुरुवार, 14 अक्तूबर 2010

असहाय कन्याओं को कराएँ कन्या भोज


हमारे यहाँ पर्व और त्योहारों से जुड़ी परंपरा और अनुष्ठानों के पीछे कई बार गहरा चिंतन होता है, लेकिन इस दौर तक आते-आते ये महज रूढ़ि हो गए हैं और मूल भावना पीछे रह गई है। इसी तरह की एक परंपरा है नवरात्रि के दौरान अष्टमी और नवमी के दिन कन्या भोज की। इस बार हर साल की तरह रूढ़ि न निभाएँ बल्कि परंपरा की मूल भावना तक पहुँचें।
चूँकि कन्याओं को देवी माँ का रूप माना जाता है, इसलिए नवरात्रि में कन्या भोज का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। माना जाता है कि कन्याभोज से देवी प्रसन्न होती हैं। अब देवी का प्रसन्न होना तो पता नहीं, हाँ जिन कन्याओं को भोजन के लिए घरों में निमंत्रित किया जाता है उनकी हालत जरूर खराब हो जाती है।
एक ही दिन में उन्हीं कन्याओं को कम से कम 5-7 घरों से निमंत्रण होता है। कभी-कभी तो इससे भी ज्यादा बच्चियाँ खाते-खाते बेदम हो जाती हैं। अब सवाल यह है कि एक ही दिन का चयन कहाँ तक उचित है? नवरात्रि का तो हर दिन महत्वपूर्ण होता है तो फिर नवमी के दिन के अलावा भी तो किसी दिन उन्हें भोज दिया जा सकता है ताकि जिन कन्याओं को आप भोजन कराना चाहते हैं कम से कम वे खुशी से तो खाएँ।
एक बार जरा यह सोचकर देखें कि कन्या भोज के लिए कॉलोनी या आसपास के घरों की कन्याओं को ही निमंत्रित किया जाता है। ये कन्याएँ उन घरों से होती हैं जो मनचाहे तब खीर-पूड़ी, पकवान भोजन के रूप में पा सकती हैं। भरे का पेट भरकर भोजन कराने से क्या पुण्य या प्रसन्नता की प्राप्ति होगी? कन्या भोज केवल एक औपचारिकता बनकर रह जाएगा, जिसे निभाना है बस इसलिए निभा दिया।
इस बार नवरात्र में कन्या भोज कराने के लिए गरीब, असहाय कन्याओं का चयन कीजिए जिनके लिए पौष्टिक भोजन आवश्यक किंतु दुर्लभ है। कन्या आपकी महरी, कामवाली बाई, माली, ड्राइवर, चौकीदार किसी की भी हो सकती है। लेकिन उन्हें पूरे सम्मान के साथ व्यवस्थित तरीके से भोजन कराएँ। नौ के बजाए जरूरतमंद कुछ कन्याओं को भी भोजन करा सकें तो आपको भी मानसिक शांति व संतुष्टि का अनुभव होगा।
किसी अनाथ बालिका आश्रम का चयन भी किया जा सकता है, जहाँ की कन्याओं को आप अपने हाथों से परोसकर भोजन कराएँ तो उनके चेहरे की प्रसन्नता आपको तृप्त कर देगी।
कन्या भोज के पश्चात कुछ भेंट भी दी जाती है। यदि देना चाहे तो जरूरतमंद को कॉपी, किताबें व आवश्यक दवाई दें।
कन्या भोज के बजट में भोज के स्थान पर किसी के उज्ज्वल भविष्य के लिए यदि ऐसा कोई विकल्प चुना जाए तो निःसंदेह वह पर्व को सार्थकता प्रदान करेगा।
इन दिनों व्रत करने के साथ-साथ श्रद्धालु दान भी करते हैं। दान करने के लिए सिर्फ आर्थिक सक्षमता जरूरी नहीं है। दान के मायने सिर्फ रुपए-पैसे से ही नहीं होता। अपने पास रखे अतिरिक्त वस्त्र जिनका उपयोग लंबे समय से नहीं किया, स्वेटर, पुस्तकें, दवाइयाँ आदि भी दान की जा सकती हैं। और अगर नया खरीदकर दान देने में सक्षम है तो किसी जरूरतमंद की पूर्ति करें।
इन दानों से ऊपर रक्तदान, विद्यादान है, जो किसी का जीवन बचा व बना सकते हैं।
कन्याओं का तिरस्कृत जीवन, भ्रूण हत्या, शिक्षा आदि बुराइयों का नाश करने में अपनी भागीदारी का संकल्प लीजिए। इस तरह थोड़ा-सा आगे बढ़ने के लिए किसी विशेष तमझाम की जरूरत नहीं। बस, थोड़ी-सी इच्छाशक्ति ही आपके इस कार्य को संपन्न करा सकती हैं।

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