मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

भागवत: ९७: भवसागर से पार करता है भगवान का नाम


भागवत में हम अजामिल की कथा सुन रहे हैं। अजामिल ने वैश्या से संबंध रखे, बच्चे पैदा किए। एक दिन अजामिल बाहर बैठा था। उसके गांव में साधु-संत आए। गांव के युवकों से पूछा भैया हमें भोजन प्राप्त करना है। तो कोई भला घर है उसके घर जाकर हम अन्न प्राप्त कर लें।जो लड़के थे उन्होंने सोचा मजाक करते हैं साधु से, अजामिल के भी मजे ले लेंगे इस बहाने। उन्होंने कहा एक बहुत अच्छा ब्राह्मण है, बड़ा शुद्ध है, बड़ा आचरणशील है। आप लोग उसके घर चले जाइए वो भोजन करा देगा।
अजामिल तो अव्वल दर्जे का भ्रष्ट था लेकिन लड़कों ने साधुओं को उसके घर भेज दिया। साधु-संत गए और साधु-संत ने अजामिल से बोला- आपके घर से भोजन चाहते हैं। अजामिल ने कहा भोजन तो मिल जाएगा पर मैं तो अव्वल दर्जे का भ्रष्ट हूं। उन्होंने कहा हम बना लेंगे, तुम सामग्री दे दो बस। उसने भोजन बनाने की सामग्री दी।उन्होंने भोजन बनाया और उनको लगा जाते-जाते कुछ भला कर जाएं इसका। उन्होंने कहा तुम्हारी पत्नी गर्भवती है तो तुम्हारे यहां अब जो संतान हो उसका नाम तुम नारायण रख देना। साधु उनको बोल गए। अजामिल को कोई लेना-देना ही नहीं था उसने कहा कुछ तो नाम रखना ही है, चिंकू-पींकू तो नारायण ही रख देंगे।
नारायण नाम रख दिया। सबसे छोटा पुत्र था तो अजामिल को बड़ा प्यार था उससे। 24 घंटे उसको बुलाए नारायण-नारायण। नारायण पानी ला, नारायण ये कर नारायण-नारायण। 80 साल की उम्र हो गई अजामिल की। मृत्यु का दिन आया। यमदूत लेने आए। अजामिल को लगा कोई लेने आए हैं। उसने सोचा क्या करूं-क्या करूं तो चिल्लाया नारायण-नारायण। आवाज लगा रहा है अपने बेटे को। नारायण जल्दी आ, अब नारायण-नारायण चिल्लाया तो भगवान विष्णु के देवदूत दौड़े आए।

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