सोमवार, 6 दिसंबर 2010

...इसलिए हमारे देश का नाम भारत पड़ा

 का पुराना नाम आर्यावर्त था। पूरुवंश के राजा दुष्यंत के पुत्र भरत के नाम पर ही इसका नाम भारत पड़ा। पूरुवंश ही आगे जाकर भरतवंश कहलाया । कौरव तथा पांडव भरतवंशी थे।

पूरुवंश का प्रवर्तक राजा दुष्यंत था। उसके राज्य में सभी सुखी थे। एक दिन राजा दुष्यंत अपनी सेना के साथ वन में गया। वह वन अत्यंत ही सुंदर था। उसे वह एक आश्रम दिखाई दिया। दुष्यंत आश्रम में गया। आश्रम में उसे एक सुंदर स्त्री दिखाई दी। दुष्यंत ने उसका परिचय पूछा तो उसने अपना नाम शकुंतला बताया। शकुंतला ने बताया कि वह ऋषि विश्वामित्र व स्वर्ग की अप्सरा मेनका की पुत्री है, जिसे ऋषि कण्व ने पाला है। उसके रूप को देखकर दुष्यंत उस पर मोहित हो गया।
दुष्यंत ने शकुंतला से गंधर्व विवाह करने का प्रस्ताव रखा, जिसे उसने सहर्ष स्वीकार कर लिया। शकुंलता को ले जाने का भरोसा दिलाकर दुष्यंत पुन: अपने नगर में आ गया। इधर जब ऋषि कण्व आए तो उन्होंने अपनी दिव्य दृष्टि से सब जान लिया और इस विवाह को शास्त्रसम्मत बताया। समय आने पर शकुंतला ने एक पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम भरत रखा। भरत अत्यंत ही पराक्रमी था। छः वर्ष की आयु में ही वह भयंकर जंगली प्राणियों के साथ खेलता था। जब भरत बड़ा हो गया तो ऋषि कण्व ने शकुंतला को भरत के साथ दुष्यंत के पास जाने को कहा।
शकुंतला भरत के साथ जब दुष्यंत के महल में पहुंची तो दुष्यंत ने उसे पहचानने से इंकार कर दिया तभी आकाशवाणी हुई कि भरत तुम्हारा ही पुत्र है इसे स्वीकार करो। तब दुष्यंत ने शकुंतला व भरत को स्वीकार कर लिया तथा समय आने पर भरत को युवराज बनाया। भरत बहुत न्यायप्रिय राजा थे। उन्होंने पूरे आर्यावर्त के विभिन्न राज्यों को एकजुट किया था।

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