रविवार, 5 दिसंबर 2010

भागवत: १३५: पुत्र वियोग में प्राण त्यागे

भागवत में हम रामकथा का श्रवण कर रहे हैं। हालांकि भागवत में रामकथा नहीं है लेकिन कृष्णकथा के साथ रामकथा का आनंद भी लेते चलें। रामकथा में हम वनवास के प्रसंग पर है। राम, लक्ष्मण व सीता जब वन जाने के लिए चले तो अयोध्या के लोगों ने कहा-हम भी चलेंगे। भगवान ने कहा-चलो। सभी साथ चले और तमसा नदी के तट पर जब पहली रात आई और भगवान ने कहा चलो सोते हैं तो सब सो गए। जैसे ही सब सो गए भगवान ने लक्ष्मण व सीता से कहा सुनो-सुनो उठो जल्दी और चल दो यहां से।

भगवान चले गए और सुबह नींद खुली अयोध्यावासियों की तो उन्होंने कहा अरे भगवान कहां गए। भगवान चले गए हो-हल्ला होने लगा। इसके बाद भगवान केवट से, गुहराज से मिलते हैं। भारद्वाज ऋषि के आश्रम में गए, वाल्मीकि के आश्रम गए। आखिर में चित्रकूट गए और वहीं ठहर गए। इधर अयोध्या का दृश्य आता है। सुमन्त अयोध्या पहुंचे। दशरथ ने कहा-कहां हैं मेरे बच्चे? सुमन्त ने कहा वो तो चले गए। दशरथ दहाड़े मारकर रो रहे हैं। राम के वियोग में दशरथजी ने प्राण छोड़ दिए।
इधर भरतजी को सूचना मिली, भरतजी जैसे ही आए सारी अयोध्या ने कहा-इसमें इसका षडय़ंत्र था। भरतजी आते हैं और सीधे कैकयी के महल में जाते हैं तो लोग कहते हैं कि षडय़ंत्र बिल्कुल पक्का हो गया। लेकिन भरत कैकयी के महल में इसलिए जाते थे क्योंकि वे जानते थे कि राम कैकयी के महल में ही मिलेंगे। उनको तो सूचना थी ही नहीं कि क्या दुर्घटना हो गई। जैसे ही पहुंचे, कैकयी और मंथरा ने बताया। भरत ने कहा-अरे मां ये तूने क्या किया। भरत फैसला लेते हैं कि मैं श्रीराम को लेने जाऊंगा, मैं श्रीराम को वापस लेकर आऊंगा।

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