शुक्रवार, 3 दिसंबर 2010

बुढि़या की सीख

(ओमप्रकाश बंछोर)
एक राजा ने एक बड़ा यज्ञ करने का निश्चय किया। उसने सोचा कि इस अवसर पर राज्य के सारे गांवों से दूध इकट्ठा करके ब
्रह्मभोज किया जाए। उसने आदेश दिया कि निर्धारित तिथि को सभी किसान अपने घरों से दूध लाकर महल के बाहर रखे बर्तन में डालें। राजा ने यह भी हुक्म दिया कि उस दिन जिसके घर जितना दूध हो वह सारा का सारा लाया जाए। राजा के हुक्म का पालन हुआ। किसी ने एक बूंद भी दूध अपने घर नहीं रखा। सारा दूध महल के बाहर रखे बर्तन में डाल दिया। राजा दूध देखने आया तो उसे यह जानकर हैरानी हुई कि राज्य का सारा दूध आने पर बर्तन आधा भी नहीं भरा। उसने सिपाहियों को गांव-गांव जाकर हर घर से दूध लाने को कहा। उन्होंने घर-घर देख डाला पर किसी के यहां दूध नहीं मिला। सिपाही निराश लौट आए। राजा भी अचंभे में था। तभी एक बुढि़या छोटे से लोटे में दूध लेकर आई। उसने जैसे ही बर्तन में दूध डाला बर्तन लबालब भर गया। सभी आश्चर्यचकित होकर यह अजीब दृश्य देख रहे थे। राजा ने उस बुढि़या से पूछा, 'क्या तुम्हें कोई जादू आता है?' बुढि़या बोली, 'जादू क्या होता है महाराज! मैंने आपकी आज्ञा का पालन नहीं किया। मैंने सुबह उठकर गाय को दुहा। पहले उसके बछड़े ने आधा दूध पिया, बाकी बचे आधे दूध में थोड़ा-थोड़ा कुत्ते और बिल्ली ने पिया। बचा हुआ दूध मैंने आपके बर्तन में डाल दिया।' राजा ने क्रोधित होकर कहा, 'मगर तूने ऐसा क्यों किया? तूने भगवान को बचा हुआ दूध दिया।' इस पर बुढि़या ने कहा, 'महाराज, भगवान का पेट भरना है तो उसके बनाए हुए जीवों का पेट भरना चाहिए। आपने घर-घर का सारा दूध मंगवा लिया। आज कितने बच्चे दूध के बगैर भूखे होंगे। क्या भगवान ऐसा दूध पिएंगे? शायद इसी से यह बर्तन खाली था।' बुढि़या की बात सुनकर राजा की आंखें खुल गई। उसने सारा दूध घर-घर बंटवा दिया।

दो थैले
(शेष नारायण बंछोर)
हमारे गांवों में अक्सर एक कथा सुनने को मिलती है। ईश्वर ने जब मनुष्य की रचना की तो उसे अपनी अन्य सभी कृ
तियों से श्रेष्ठ बनाया। सुघड़ और सुंदर बनाने के साथ उसे बुद्धि भी दी। जब मनुष्य इस पृथ्वी पर पहुंचा तो ब्रह्मा ने उससे पूछा, अब यहां आकर तुम क्या चाहते हो? मनुष्य ने कहा, प्रभु, मैं तीन बातें चाहता हूं। एक, मैं सदा प्रसन्न रहूं। दूसरा, सभी मेरा सम्मान करें। और तीसरा, मैं सदा उन्नति के पथ पर चलता रहूं।
मनुष्य की ये इच्छाएं जान कर ब्रह्मा जी ने उसे दो थैले दिए और कहा, एक थैले में तुम अपनी सभी कमजोरियां डाल दो, और दूसरे थैले में दूसरे लोगों की कमियां डालते रहो। साथ ही यह भी कहा कि इन दोनों थैलों को हमेशा अपने कंधों पर ले कर चलना। लेकिन हां, एक बात का ध्यान और रखना कि जिस थैले में तुम्हारी अपनी खामियां हैं, उसे तो अगली तरफ रखना। और जिस थैले में दूसरों की कमजोरियां रखी हैं, उन्हें पीछे की तरफ यानी पीठ पर रखना। समय-समय पर सामने वाला थैला खोलकर निरीक्षण भी करते रहना, ताकि अपनी त्रुटियां दूर कर सको। परंतु दूसरे लोगों के अवगुणों का थैला, जो पीठ पर डाला होगा, उसे कभी न खोलना और न ही दूसरों के ऐब देखना या कहना। यदि तुम इस परामर्श पर ठीक से आचरण करोगे, तो तुम्हारी तीनों इच्छाएं पूरी होंगी- तुम सदा प्रसन्न रहोगे, सबसे सम्मान पाओगे और सदा उन्नति करोगे।
मनुष्य ने ब्रह्मा जी को नमस्कार किया और अपने दुनियावी कामकाज में लग गया। लेकिन इस बीच उसे थैलों की पहचान भूल गई। जो थैला पीछे डालना था उसे तो आगे टांग लिया और जिस थैले को आगे रख कर देखते रहने को कहा था, वह पीछे की तरफ कर दिया। तब से मनुष्य दूसरों के अवगुण ही देखता है, अपनी कमजोरियों पर ध्यान नहीं देता। इसी वजह से उसेफल भी उलटा ही मिलता है।

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