शनिवार, 4 दिसंबर 2010

सेवा की मिली मेवा लेकिन..

एक गिलहरी शेर की सेवा में लगी थी। वह थी तो छोटी-सी, पर अपनी पूरी क्षमता से शेर के काम करती। हरदम लगी रहती। शेर भी उसकी सेवा से ख़ुश था। उसने गिलहरी को इनाम में दस बोरी अखरोट देने का वादा किया। गिलहरी बड़ी ख़ुश हुई। उसे लगा कि उसकी मेहनत सार्थक हो गई। वह सपने देखने लगी कि दस बोरी अखरोट मिलने के बाद उसे काम करने की Êारूरत नहीं रहेगी। उसके बाद तो उसका सारा जीवन सुख और आराम से गुÊारेगा। लेकिन आज का सच यह था कि शेर ने वादा किया था, उसने अखरोट भरी बोरियां दी नहीं थीं।
फिर भी आस पक्की थी, क्योंकि यह शेर का वादा था, जो पूरा होना ही था। सो, गिलहरी दूने जोश से उसकी सेवा में जुट गई। वह काम करते-करते अपने पुराने साथियों को देखती, जो एक डाली से दूसरी डाली पर फुदकते रहते, कभी Êामीन पर उतर सरपट दौड़ पड़ते। गिलहरी को एक पल के लिए ख़ुद पर अफ़सोस होता, पर अगले ही पल उसके मन में आता कि ये लोग भले ही आज मौज-मस्ती कर रहे हैं, लेकिन जब मुझे अखरोटों के रूप में अपनी सेवा का पुरस्कार मिल जाएगा, मैं पूरी Êिांदगी मौज करूंगी।
इस तरह वह नन्ही-सी गिलहरी शेर की सेवा में जुटी रही। शेर कभी उससे ख़ुश हो जाता, कभी झिड़क भी देता। उसे एक अन्य जंगल में रहने वाले शेर की सेवा के लिए भी भेजा गया। हर मौक़े पर वह यही सोचती रही कि एक बार अखरोट मिल जाएं, बस! आख़िर गिलहरी को रिटायर कर दिया गया। और सचमुच, शेर ने उसे इनाम में दस बोरी अखरोट भी दिए। पर गिलहरी को ख़ुशी नहीं हुई। क्यों? क्योंकि उसके पूरे दांत झड़ चुके थे। अब अखरोट उसके किस काम के?

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