शुक्रवार, 14 जनवरी 2011

2011 की संक्रांति के विशेष संयोग

1. गुरु स्वराशि में बलवान है तथा शनि शत्रुक्षेत्री कमजोर है।
2. शनि का रहा सहा पाप प्रभाव गुरु उसे पूर्ण दृष्टि से देख कर समाप्त कर रहा है।
3. चन्द्रमा उच्चस्थ है तथा गुरु से गजकेसरी योग बना रहा है।
4. मंगल उच्चस्थ है किन्तु उसका पाप प्रभाव सूर्य से अस्त होने के कारण नष्ट हो गया है।
5. एक ग्रह राहू पापी बचता है। सिद्धान्त है कि राहू के दोष को अकेला बुध समाप्त कर देता है। वही राहू बुध के साथ धनु राशि में बैठा है।
ऐसी स्थिति में ग्रहों के इस सहयोग एवं अनुकूलता का लाभ प्रत्येक व्यक्ति को उठाना चाहिए। ऐसा क्षण संभवत: जीवन में दोबारा प्राप्त न हो पाए।

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