शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

मोक्ष प्रदान करता है शिव महापुराण


शिव महापुराण शैव संप्रदाय का प्रमुख ग्रंथ है। इसमें 24 हजार श्लोक हैं। शिव महापुराण का प्रारंभ तब होता है जब श्रीशौनकजी महाज्ञानी सूतजी से समस्त पुराणों के सारतत्व के रहस्य के बारे पुछते हैं।
शौनकजी सूतजी से कहते हैं कि इस संसार में ज्ञानी पुरुष किस प्रकार अपने काम, क्रोध आदि को छोड़कर भगवान की भक्ति पा सकता है। इसका क्या उपाय हो सकता है। तब सूतजी शौनकजी से कहते हैं कि भक्तिपूर्वक शिवमहापुराण को सुनने से मन शुद्ध होता है तथा अंत में मोक्ष प्राप्त होता है। शिव महापुराण कानों के लिए अमृत के समान है। शिव महापुराण के वाचन पूर्वकाल में भगवान शिव ने ही किया था। गुरुदेव व्यास ने सनत्कुमार मुनि का उपदेश पाकर बड़े ही आदर से संक्षेप में इस पुराण को लिखा है। शिव महापुराण का मुख्य उद्देश्य ही कलियुग में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों को भक्ति का मार्ग दिखाना तथा उन्हें मोक्ष देना।
सूतजी आगे कहते हैं कि शिवमहापुराण को सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है तथा जीवन के सभी भोगों को भोग कर अंत में शिवलोक को प्राप्त करता है। जो मनुष्य प्रतिदिन विधि-विधानपूर्वक शिव महापुराण की पूजा करता है वह सदा सुखी रहता है। अत: सदैव प्रेम व भक्तिपूर्वक शिव महापुराण का पूजन व श्रवण करना चाहिए।

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