शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

ऐसा है पुरी का सौंदर्य


हिन्दू धर्म के चार पावन धामों में जगन्नाथ पुरी पहुंचकर हर तीर्थयात्री या पर्यटक मात्र ईश्वर या धर्म से ही नहीं जुड़ता बल्कि वह स्वयं को भगवान जगन्नाथ के द्वारा रची पूरी प्रकृति के भी निकट पाता है। यहां मानव जीवन के अस्तित्व, सुंदरता और उजले पक्ष के सही अर्थों का अहसास हो जाता है। इस प्रकार यहां की यात्रा धार्मिक होने के साथ ही घूमने का आनंद भी देती है।
पुरी और नजदीकी क्षेत्रों में अनेक धार्मिक, ऐतिहासिक और प्राकृतिक दर्शनीय स्थल हैं। देवस्थानों की मूर्तियां, वास्तुकला, नक्काशी, ऐतिहासिक स्थानों की स्थापत्य कला के साथ समुद्र का किनारा हर यात्री का मन सुख और आनंद से भर देता है। पुरी में जनकपुरी, चंदन तालाब और नंदनकानन अभ्यारण के साथ-साथ पुरी और चंद्रभागा का सुरम्य समुद्री तट मन मोह लेते हैं।पुरी के समीप ही स्थित है - उदयगिरी, धौलगिरी की अद्भुत बौद्ध गुफाएं और जैन तपस्वियों की तपोभूमि खंडगिरी की गुफाएं दर्शनीय है। इसके अलावा कोणार्क का सूर्य मंदिर, लिंगराज मंदिर और साक्षी गोपाल मंदिर की वास्तुकलाओं और सुंदरता को देखकर पर्यटकों की नजरें थम जाती हैं।
पुरी में सबसे ज्यादा आनंद और सुख देता है भगवान जगन्नाथ का मंदिर और वार्षिक रथ यात्रा। उडी़सा का पुरी क्षेत्र यानि उत्कल प्रदेश भगवान श्री जगन्नाथजी की लीला-भूमि है। उत्कल प्रदेश के प्रधान देवता श्री जगन्नाथजी ही माने जाते हैं। यहां की रथ-यात्रा का पौराणिक महत्व भी है। स्कंद पुराण के अनुसार रथ-यात्रा में शामिल होने वाले धर्मालुजन भगवान जगन्नाथ ध्यान और जप से करता हुआ जब गुंडीचा मंदिर पहुंचे तो वह मोक्ष को प्राप्त होता है। जो श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ के दर्शन और नमन करते हुए राह में धूल-कीचड़ में लौटता है, वह विष्णुधाम यानि वैकुण्ठ को प्राप्त करता है। ऐसे श्रद्धालु जनम-मरण के बंधन से मुक्त हो जाते है, जो गुंडिचा मंदिर के मंडप में रथ पर विराजित श्री जगन्नाथ, बलभद्र और मात सुभद्रा के दक्षिण दिशा की ओर आते हुए दर्शन करते हैं।
धर्मप्राण लोगों की मान्यता है कि रथयात्रा ऐसा महोत्सव है, जिसमें भगवान जगन्नाथ स्वयं भक्तों के जीवन के कष्टों को जानने और उन पीड़ाओं से मुक्त करने के लिए आते हैं इसलिए भगवान जगन्नाथ को विष्णु अवतारों का सामुहिक स्वरुप माना जाता है। इस तरह पुरी का पवित्र धाम सुख, आनंद और अध्यात्म का परम धाम है। जहां आकर व्यक्ति कष्ट, दु:खों और कलह को खोकर सुख का ऐसा खजाना पाता है, जो जीवन जीने की नई ऊर्जा का संचार करता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें