शनिवार, 15 जनवरी 2011

राजनीतिज्ञ, रेप और बयानबाजी

पिछले दिनों बिहार के पूर्णिया जिले से बीजेपी के विधायक राजकिशोर केसरी के घर पर लगे जनता दरबार में रूपम पाठक नाम की महिला ने उनकी हत्या कर दी। महिला का आरोप है कि विधायक लंबे समय से उसका यौन शोषण कर रहा था। हत्या के बाद इस महिला ने खुद को फांसी पर चढ़ा देने की अपील करते हुए कहा- 'कोई नहीं जानता कि मैं किन हालात से गुजरी हूं।' रूपम ने पिछले साल मई माह में विधायक के खिलाफ यौन शोषण का मामला दर्ज कराया था।
घटना के फौरन बाद बीजेपी नेता सुशील मोदी ने प्रेस कांफ्रेंस कर केसरी को 'क्लीन चिट' देते हुए उनकी लोकप्रियता और 'अच्छे चरित्र' के कसीदे पढे़ और महिला की मानसिक स्थिति की जांच करने की मांग करते हुए उस पर ब्लैकमेल करने के आरोप लगाए। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इसे विधायकों की सुरक्षा का मामला बताया और लालू प्रसाद यादव ने सरकार को आम आदमी की सुरक्षा में विफल रहने का दोषी करार दिया।
पार्टी की 'इज्जत'
किसी भी महिला का कानून हाथ में लेकर एक जनप्रतिनिधि पर वार करना उचित नहीं है। लेकिन सवाल यह है कि स्कूल चलाने वाली एक शिक्षिका ने आखिर कानून हाथों में ले अपनी जान जोखिम में डालकर एक राजनेता पर वार करने का दुस्साहस क्यों किया? अगर ब्लैकमेल करना ही उसका मकसद था तो उसने अपनी जान की परवाह न करते हुए हत्या जैसा अपराध क्यों किया? किसी भी पाटीर् ने घटना के इस संवेदनशील पहलू को समझने और उसके पीछे के कारणों को जानने और उस पर अफसोस जताने की कोशिश नहीं की। बीजेपी ने तो इसे पाटीर् की 'इज्जत' का मुद्दा मानते हुए बिना किसी जांच-पड़ताल के ही अपने विधायक को 'पवित्र' और महिला को 'चरित्रहीन' घोषित कर दिया।
चरित्र का हथियार
हाल में उत्तर प्रदेश के बीएसपी विधायक पुरुषोत्तम नरेश द्विवेदी पर भी एक किशोर लड़की के साथ बलात्कार करने का आरोप लगा है। प्रारंभिक जांच में ही वे दोषी पाए गए हैं। लेकिन जब उनके खिलाफ पहले रेप की शिकायत की गई थी, तो उन्होंने तुरंत बयान जारी किया था कि वे नपुंसक हैं और रेप कर ही नहीं सकते। सीबीआई ने इसी साल गिरफ्तार हुए समाजवादी पार्टी के श्रीपत अजार पर यौन शोषण के बाद महिला को जलाने का आरोप लगाया, लेकिन वह जमानत पर छूट गए। सुलतानपुर से इसी पार्टी के विधायक अनूप सानदा पर पिछले साल बलात्कार का आरोप लगा, लेकिन अभी तक जांच चल रही है।
जब भी किसी राजनेता पर बलात्कार या यौन शोषण का आरोप लगता है तो संबंधित पाटीर् की सहानुभूति पीडि़त महिला या अपने साथ हुए यौन शोषण को खुले रूप से स्वीकारने वाली महिला की अपेक्षा पार्टी की साख बचाने और आरोपी को बेदाग साबित करने की अधिक रहती है। इसके लिए कभी महिला के अतीत को उधेड़ कर उसे चरित्रहीन साबित करने की कोशिश होती है, तो कभी उसे ब्लैकमेलर या विक्षिप्त साबित बताने का खेल खेला जाता है। अपने चुनावी अभियान में जो पार्टियों महिलाओं की सुरक्षा के प्रति व्याकुल नजर आती हैं, वही पार्टी अपने किसी प्रतिनिधि पर ऐसा आरोप लगने पर महिला की प्रतिष्ठा की रत्ती भर भी परवाह नहीं करतीं। ऐसी स्थितियों में पाटीर् की महिला नेताओं की चुप्पी और भी सालती है।
हैरत की बात है कि किसी भी पार्टी ने अभी तक अपने यहां ऐसे किसी सेल का गठन नहीं किया है, जहां कोई महिला निडर होकर किसी पार्टी नेता के खिलाफ अपनी शिकायत दर्ज कर सके। और तो और, किसी भी पार्टी में किसी सदस्य द्वारा किसी महिला के साथ छेड़खानी करने या यौन शोषण करने पर गुप्त शिकायत पेटिका जैसा प्रावधान भी नहीं रखा गया है, हालांकि हर पार्टी में ग्रासरूट स्तर से लेकर ऊपर तक महिला कार्यकर्त्ताओं का बड़ा हुजूम है। और राजनीति में, जहां महत्वाकांक्षाओं के लिए शोषित किए जाने की कई स्तरों पर गुंजाइश है। संसद में यौन शोषण के खिलाफ कानून लाने और हर कार्यालय में ऐसे सेल बनाने की वकालत करने वाली ये पाटिर्यां अपने घर को साफ -सुथरा रखने के लिए ऐसे उपायों पर अमल क्यों नहीं करतीं?
कई पाटीर् सदस्य यह तर्क देते हैं कि पार्टी के लंबे-चौड़े संगठनों में हर व्यक्ति अपने व्यवहार के लिए स्वतंत्र है और हर किसी पर चरित्र संबंधी नियम या आचार संहिता थोपना संभव नहीं है। लेकिन फिर ऐसा क्यों होता है कि ऐसी कोई घटना होने पर पार्टी उसे अपनी 'इज्जत' का सवाल बनाते हुए अपने नेता को बचाने में एड़ी-चोटी का जोर लगा देती है। ऐसे मामलों को संबंधित सदस्य का निजी मामला न मानते हुए पार्टी खुद मीडिया में उसके 'बचाव' के लिए बयान देना क्यों शुरू कर देती है? जबकि सभी जानते हैं कि ऐसे अधिकतर मामलों के लंबा खिंचने का मुख्य कारण आरोपियों का यही राजनैतिक जुगाड़ हुआ करता है। बहुचर्चित मधुमिता कांड में विधायक अमरमणि को सजा दिलाने में मधुमिता के परिवार को सालों इंतजार करना पड़ा, हालांकि वह एक निर्दलीय विधायक था। इसी प्रकार तंदूर कांड में नैना साहनी को जिंदा जलाने के बाद भी आरोपी नेता सुशील शर्मा को एक दशक से अधिक समय के बाद सजा मिली।
अपराध में हिस्सेदारी
सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक आदेश में साफ किया है कि अतीत में महिला का चरित्र कैसा भी हो, इससे बलात्कार के अपराधी का अपराध कम नहीं हो जाता। इसके बावजूद ऐसे मामलों में आरोप लगाने वाली महिला के चरित्र का विभिन्न कोणों से विश्लेषण करने की कोशिश की जाती है। यौन शोषण के मामले में हकीकत केवल दो ही व्यक्ति जानते हैं। एक शोषक और दूसरा शोषण सहने वाला। ऐसे में किसी भी महिला के पास खुद स्वीकारने के अलावा यह साबित करने का और क्या जरिया बचता है कि उसके साथ अत्याचार हो रहा है? अगर यह मान भी लें कि कुछ समय के लिए पीडि़त महिला और आरोपी पुरुष के बीच सहमति रही है, तो इसका अर्थ यह नहीं कि उस संबंध का फायदा उठाकर पुरुष उसका यौन शोषण करे। शोषण का मतलब ही है सहमति के विरुद्ध। दोषी राजनीतिज्ञ अपने बचाव में अक्सर ऐसी ही दलीलों का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन उनके इस अपराध में उनकी पार्टियां साझीदार क्यों बन रही हैं?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें