शनिवार, 15 जनवरी 2011

पाण्डवों को क्यों जाना पड़ा वारणावत?


दुर्योधन ने जब देखा कि भीमसेन की शक्ति असीम है और अर्जुन का अस्त्र ज्ञान तथा अभ्यास विलक्षण है तो वह उनसे और अधिक द्वेष रखने लगा। उसी समय हस्तिनापुर की प्रजा भी यही कहने लगी कि अब युधिष्ठिर को राजा बना देना चाहिए। प्रजा की इस प्रकार की सुनकर दुर्योधन जलने लगा। वह धृतराष्ट्र के पास गया और कहा कि यदि युधिष्ठिर को राज्य मिल गया तो फिर यह उन्हीं की वंश परंपरा से चलेगा और हमें कोई पूछेगा भी नहीं। तब दुर्योधन ने धृतराष्ट्र को एक युक्ति सुझाई कि आप किसी बहाने से पाण्डवों को वरणावत भेज दीजिए।
यह कहकर दुर्योधन प्रजा को प्रसन्न करने में लग गया और धृतराष्ट्र ने कुछ ऐसे चतुर मंत्रियों को नियुक्त कर दिया जो वारणावत की प्रशंसा करके पाण्डवों को वहां जाने के लिए उकसाने लगे। इस प्रकार वारणावत नगर की प्रशंसा सुनकर पाण्डवों का मन भी वहां जाने को हुआ। उचित अवसर देखकर धृतराष्ट्र ने पाण्डवों को बुलाया और कहा कि इन दिनों वारणावत में मेले की धूम है यदि तुम वहां जाना चाहते हो तो हो आओ।
युधिष्ठिर धृतराष्ट्र की चाल तुरंत समझ गए लेकिन धृतराष्ट्र का कहना वे टाल न सके। इस तरह युधिष्ठिर आदि सभी पाण्डवों व कुंती धृतराष्ट्र की आज्ञा से वारणावत जाने के लिए तैयार हो गए।

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