बुधवार, 12 जनवरी 2011

कथासागर

विचित्र आशीर्वाद
राजा संत के पास गया। संत ने राजा को आशीर्वाद दिया, 'सिपाही बन जाओ।' यह बात राजा को अच्छी नहीं लगी। दूसरे दिन राजा ने अपने राज्य के सबसे बड़े विद्वान को संत के पास भेजा। संत ने कहा, 'अज्ञानी बन जाओ।' विद्वान भी नाराज होकर लौट गए। इसी तरह जब नगर सेठ आया तो संत ने आशीर्वाद दिया, 'सेवक बन जाओ।' सेठ भी रुष्ट होकर वापस आ गया।
संत के आशीर्वाद की चर्चा राज दरबार में हुई। लोग कहने लगे कि यह संत नहीं, धूर्त है, तभी अनाप-शनाप आशीर्वाद देता है। किसी ने कहा कि संत जरूर मानसिक संतुलन खो चुके हैं। एक दिन राजा ने अपने सैनिक भेजकर संत को राजदरबार में बुलाया। राजा ने संत से कहा, 'आप ने आशीर्वाद देने के बहाने सभी लोगों का अपमान किया है, इसलिए आपको दंड दिया जाएगा।'
यह सुनकर संत हंस पड़े। राजा ने जब इसका कारण पूछा तो संत ने कहा, 'लगता है इस राज दरबार में सब मूर्ख हैं। मैंने जो कहा है, ठीक कहा है। मैंने राजा को कहा कि सिपाही बन जाओ क्योंकि राजा का कर्म है राज्य की सुरक्षा करना। सिपाही का काम भी रक्षा करना होता है। विद्वान को अज्ञानी बन जाने को कहा। इसका तात्पर्य यह है कि विद्वान ज्ञानी होता है। कहीं उसे अपने ज्ञान का अभिमान न हो जाए, इसीलिए मैंने उसे अज्ञानी बनने को कहा था। सेठ का कर्त्तव्य होता है, अपने धन से गरीबों की सेवा करना। इसीलिए मैंने उसे सेवक बनने का आशीर्वाद दिया।' यह सुनकर राजा ने संत से क्षमा मांगी।

शांति की खोज
उन दिनों स्वामी रामतीर्थ अमेरिका गए हुए थे। वहां उनके प्रवचन की हर ओर धूम थी। अमेरिकी नागरिक उनसे अपनी परेशानियों के हल पूछने आते और खुशी-खुशी वहां से जाते थे। एक दिन एक अमेरिकी महिला उनके पास पहुंची और बोली, 'स्वामी जी, मेरा सब कुछ लुट गया। मुझे अब इस जीवन में कभी शांति नहीं मिल सकती। कृपया मेरे चित्त को शांत करने का उपाय बताएं।'
स्वामी जी ने कहा, 'माता, पहले आप अपने दुख का कारण तो बताएं।' महिला रोती हुई बोली, 'मेरा इकलौता पुत्र काल के गाल में समा गया है। अब मैं क्या करूं?' वह जोर-जोर से विलाप करने लगी। स्वामी जी ने उसे सांत्वना दी और अगले दिन उसके दुख को दूर करने का वादा किया। अगले दिन महिला फिर पहुंची। उसने कहा, 'स्वामी जी, आपने मुझसे वादा किया था कि आज आप मेरी समस्या का समाधान करेंगे।' स्वामी जी बोले, 'बिल्कुल, मैं अवश्य आपकी समस्या दूर करूंगा।'
इसके बाद उन्होंने एक छोटे से बालक को आवाज देकर बुलाया और उसका हाथ महिला के हाथ में सौंपते हुए कहा, 'यह लो अपना बेटा। आपको संतान चाहिए और इसे माता-पिता। आप इसके साथ बेटे जैसा व्यवहार करना, फिर देखना आपके सारे दु:ख-दर्द कैसे दूर हो जाते हैं।' उस महिला को इसकी आशा न थी। वह बोली, 'स्वामी जी, भला यह कैसे संभव है? मैं इसे अपना पुत्र कैसे मान लूं? पता नहीं यह कौन है? इसमें तो मेरा अंश मात्र भी नहीं है।'
उसकी बात सुनकर स्वामी जी गंभीर होकर बोले, 'ऐसे सोचेंगी तो न कभी आपका दु:ख-दर्द दूर होगा न ही जीवन में शांति मिल सकेगी। आत्मीयता का विस्तार करना सीखें। औरों में भी अपना रूप देखें। इस बच्चे में अपना बेटा देखें। जीवन जरूर बदलेगा। जीवन में सुख और शांति आएगी।' वह अमेरिकी महिला स्वामी रामतीर्थ की बातें सुनकर दंग रह गई। उसे अपनी गलती का अहसास हो गया। वह अनाथ बच्चे को प्रेम से अपने साथ ले गई ।

दिशाओं की पूजा
एक बार एक गृहस्थ व्यक्ति सभी दिशाओं को नमस्कार कर रहा था। उसकी इस गतिविधि को एक संत और उनके शिष्य देख रहे थे। एक शिष्य ने संत से पूछा , ' यह व्यक्ति दिशाओं की पूजा क्यों कर रहा है ?' संत बोले , ' चलो , उसी से पूछ लेते हैं। ' प्रश्न सुनकर वह व्यक्ति असमंजस में पड़ गया और बोला , ' यह तो मुझे भी नहीं पता। आप ही बताइए न। ' संत बोले , ' पूजा करने की दिशाएं भिन्न होती हैं माता - पिता और गृहपति पूर्व दिशा है। आचार्य दक्षिण , स्त्री - पुत्र - पुत्री पश्चिम और मित्र आदि उत्तर दिशा है।
सेवक और श्रमण - ब्राह्मणों के लिए भी दिशाएं निर्धारित हैं। इसलिए सभी दिशाओं का पूजन किया जाता है। इन सभी दिशाओं का सच्चे हृदय से पूजन करने से लाभ होता है । ' संत का जवाब सुनकर वह व्यक्ति बोला , ' और तो सब ठीक है महाराज। मैं सबकी पूजा सच्चे हृदय से कर सकता हूं , परंतु सेवकों की पूजा कैसे की जा सकती है ? सेवक तो स्वयं मेरी सेवा करते हैं । ' यह सुनकर संत बोले , ' पूजा का अर्थ केवल हाथ जोड़ना अथवा सिर झुकाना नहीं है , सेवकों की सेवा का स्वरूप उनके प्रति स्नेह और वात्सल्य दर्शाने में है , उनकी हर संभव मदद करने में है और उनसे प्रेम से बात करने में है । '
यह सुनकर वह व्यक्ति बोला , ' आपने मुझे सही ज्ञान कराया है। अभी तक तो मैं मात्र हाथ जोड़कर सिर नवाने को ही पूजन समझता था किंतु आज आपने मुझे असली दिशा पूजन की विधि समझाई है और मैं भविष्य में इसी तरह से पूजन कर अपने जीवन को सफल बनाऊंगा। '

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