रविवार, 16 जनवरी 2011

जब सारा जगत श्रीकृष्ण के मुख में समा गया


शुकदेवजी कहते हैं- परीक्षित। कुछ ही दिनों में बलराम और श्याम घुटनों और हाथों के बल चल-चलकर गोकुल में खेलने लगे। कान्हा की लीलाओं को देखकर गोपियों का मन अस्थिर होकर लीलाओं में ही तन्मय हो जाता था। एक दिन बलराम आदि ग्वालबाल श्रीकृष्ण के साथ खेल रहे थे। उन लोगों ने मां यशोदा के पास आकर कहा मां। कन्हैया ने मिट्टी खायी है। माता यशोदा ने श्रीकृष्ण का हाथ पकड़ लिया। यशोदा मैया ने डांटकर कहा-क्यों रे नटखट। तू बहुत ढीठ हो गया है। तूने मिट्टी क्यों खाई? देख तो तेरे दल के तेरे सखा क्या कह रहे हैं। तेरे बड़े भैया बलदाऊ भी तो उन्हीं की ओर से गवाही दे रहे हैं।
श्रीकृष्ण ने कहा-मां। मैंने मिट्टी नहीं खाई। ये सब झूठ बोल रहे हैं। यदि तुम इन्हीं की बात सच मानती हो तो मुंह तुम्हारे सामने ही है, तुम अपनी आंखों से देख लो। यशोदाजी ने कहा अच्छी बात। यदि ऐसा है तो मुंह खोल। माता के ऐसा कहने पर भगवान श्रीकृष्ण ने अपना मुंह खोल दिया। परीक्षित। यशोदाजी ने देखा कि कृष्ण के मुंह में चर-अचर सम्पूर्ण जगत विद्यमान है । सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड कृष्ण के श्रीमुख में समाया हुआ है। सभी देवता, सभी लोक, सम्पूर्ण ज्योर्तिमण्डल, सारे गृह-नक्षत्र लाला के छोटे से मुख में दिखाई दे रहे थे।
माता हैरान थीं, उनके मन में कई शंका-कुशंकाएं जन्म ले रही थीं। वे सोचने लगीं कि यह कोई स्वप्न है या भगवान की माया? तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपनी वैष्णवी योगमाया का उनके हृदय में संचार कर दिया। माता यशोदाजी तुरंत वह घटना भूल गईं। माया का प्रभाव ऐसा चला कि क्षण भर पहले की घटना भी याद नहीं रही। उन्होंने पुन: अपने लल्ला को गोद में उठा लिया और स्नेह करने लगीं।

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