रविवार, 16 जनवरी 2011

भागवत १६५: नंद व यशोदा कौन थे पूर्व जन्म में?


राजा परीक्षित ने शुकदेवजी महाराज से पूछा- हे भगवन। सारे वेद, उपनिषद, सांख्य योग और भक्तजन जिनके माहात्म्य का गीत गाते नहीं थकते, उन्हीं भगवान ने यशोदाजी को पुत्र सुख प्रदान किया। नन्दबाबा तथा यशोदाजी ने ऐसी कौन सी तपस्या की थी, जिसके कारण स्वयं भगवान ने उन्हें पुत्र रूप में सुख प्रदान किया।
शुकदेवजी ने बताया- नन्दबाबा पूर्वजन्म में एक श्रेष्ठ वसु थे। उनका नाम था द्रोण और उनकी पत्नी का नाम था धरा।उन्होंने ब्रह्माजी के आदेशों का पालन करने की इच्छा से उनसे कहा-भगवन। जब हम पृथ्वी पर जन्म लें, तब जगदीश्वर भगवान श्रीविष्णु हमारे घर में पुत्र रूप में आनन्द बिखेंरे तथा हमारा जीवन सार्थक करें। ब्रह्माजी ने कहा ऐसा ही होगा। वे ही परमयशस्वी द्रोण ब्रज में पैदा हुए और उनका नाम हुआ नन्द और वे ही धरा इस जन्म में यशोदा के नाम से उनकी पत्नी हुई।
परीक्षित। अब इस जन्म में जन्म-मृत्यु के चक्र से छुड़ाने वाले भगवान उनके पुत्र हुए और समस्त गोप-गोपियों की अपेक्षा इन पति-पत्नी नन्द और यशोदाजी का उनके प्रति अत्यन्त प्रेम हुआ। ब्रह्माजी की बात सत्य करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण बलरामजी के साथ ब्रज में रहकर समस्त ब्रजवासियों को अपनी बाल-लीला से आनन्दित करने लगे।भगवान की ऐसी लीलाएं ब्रज भूमि पर हुईं कि गोप-गोपियां बने देवताओं की प्रसन्नता व आनन्द की कोई सीमा ही नहीं रही। जो आनन्द स्वर्ग में नहीं मिला, वो ब्रज भूमि पर नित्य सुलभ हो रहा था। सारे गोप-गोपियां, देवता, सारे गण कृष्ण भक्ति में रम गए। भक्ति जीवन में आ जाए तो मुक्ति का रास्ता भी खुल जाता है।

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