सोमवार, 24 जनवरी 2011

चौबीस हजार श्लोक हैं शिव महापुराण में

पुरातन समय की बात है। एक बार तीर्थराज प्रयाग में समस्त साधु-संत आकर ठहरे। उस समय वहां महर्षि वेदव्यास के शिष्य महामुनि सूतजी भी आए। सूतजी को देखकर साधु-संत आदि महात्मा अति प्रसन्न हुए। उन्होंने सूतजी से कहा कि घोर कलयुग आने पर मनुष्य पुण्यकर्म नहीं करेंगे तथा दुराचारी हो जाएंगे। धर्म का त्याग कर देंगे तथा अधर्म में ही मन लगाएंगे। उस स्थिति में उन्हें परलोक में उत्तम गति कैसे प्राप्त होगी? अत: ऐसा कुछ उपाय बताएं जिससे कि कलयुग के मानवों का पाप तत्काल नाश हो जाए।

तब सूतजी भगवान शंकर का स्मरण कर बोले कि भगवान शंकर की महिमा को बताने वाला जो शिव महापुराण है, वह सभी पुराणों में श्रेष्ठ है। कलियुग में जो भी शिव महापुराण का वाचन करेगा तथा धर्मपूर्वक इसका श्रवण करेगा वह सभी पापों से मुक्त हो जाएगा। इस शिव महापुराण की रचना स्वयं भगवान ने ही की है। इसमें बारह संहिताएं हैं। मूल शिव महापुराण की श्लोक संख्या एक लाख है परंतु व्यासजी ने इसे चौबीस हजार श्लोकों में संक्षिप्त कर दिया है।
पुराणों की क्रम संख्या के अनुसार शिव महापुराण का स्थान चौथा है। इसमें वेदांत, विज्ञानमय तथा निष्काम धर्म का उल्लेख है। साथ ही इस ग्रंथ में श्रेष्ठ मंत्र-समूहों का संकलन भी है। जो बड़े आदर से इसे पढ़ता और सुनता है, वह भगवान शिव का प्रिय होकर परम गति को प्राप्त करता है।

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