सोमवार, 17 जनवरी 2011

भागवत १६९: श्रीकृष्ण ने क्यों फोड़ी दही की मटकी?

पिछले अंक में हमने पढ़ा कि यशोदा ने बालकृष्ण को खिलाने के लिए अपने हाथों से माखन बनाया। उस समय बालकृष्ण सो रहे थे। जब बालकृष्ण जागे तो माता को ढूंढते हुआ उधर आ पहुंचे जहां माता यशोदा माखन बना रही थीं। उन्होंने पीछे से माता का आंचल खींचा। यशोदा तो काम में ऐसी लीन थी कि उन्हें खबर तक नहीं हुई, कन्हैया माता से कहने लगा-मां मुझे भूख लगी है, पहले दूध पिला दो।

उसी समय भगवान श्रीकृष्ण दूध पीने के लिए दही मथती हुई अपनी माता के पास आए। उन्होंने अपनी माता के हृदय में प्रेम और आनन्द को और भी बढ़ाते हुए दही की मथानी पकड़ ली तथा उन्हें मथने से रोक दिया। श्रीकृष्ण माता यशोदा की गोद में चढ़ गए। वात्सल्य स्नेह की अधिकता से माता यशोदा के स्तनों से दूध तो स्वयं झर ही रहा था। वे उन्हें पिलाने लगीं और मन्द-मन्द मुसकान से युक्त उनका मुख देखने लगीं। इतने में ही दूसरी ओर अंगीठी पर रखे हुए दूध में उफान आया। उसे देखकर यशोदाजी उन्हें अतृप्त ही छोड़कर जल्दी से दूध उतारने के लिए चली गईं। इससे श्रीकृष्ण को कुछ क्रोध आ गया। तब श्रीकृष्ण ने पास ही रखा हुआ दही का मटका फोड़ डाला, बनावटी आंसू आंखों में भर लिए और दूसरे घर में जाकर अकेले में बासी माखन खाने लगे।
इस घटना से अभिप्राय है कि जब मन भगवान में लीन हो तो भक्त को संसार का मोह छोडऩा पड़ता है, अगर मन फिर संसार में भटके तो परमात्मा नाराज होगा ही। यशोदा ने लाला को छोड़कर रसोई के दूध की चिन्ता

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