रविवार, 16 जनवरी 2011

महाभारत में लिखा है माघ मास का महत्व

माघ मास में स्नान, दान, उपवास व भगवान माधव की पूजा अत्यंत फलदायी बताई गई है। इस विषय में महाभारत के अनुशासन पर्व में इस प्रकार वर्णन है-
दशतीर्थसहस्त्राणि तिस्त्र: कोट्यस्तथा परा:।।
समागच्छन्ति माघ्यां तु प्रयागे भरतर्षभ।
माघमासं प्रयागे तु नियत: संशितव्रत:।।
स्नात्वा तु भरतश्रेष्ठ निर्मल: स्वर्गमाप्नुयात्।
(महाभारत. अनु. 25/36-३८)
अर्थात हे भरतश्रेष्ठ। माघमास की अमावस्या को प्रयागराज में तीन करोड़ दस हजार अन्य तीर्थों का समागम होता है, जो नियमपूर्वक उत्तम व्रत का पालन करते हुए माघमास में प्रयाग में स्नान करता है, वह सब पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में जाता है।
माघमासे तिलान् यस्तु ब्राह्मणेभ्य: प्रयच्छति।
सर्वसत्तवसमाकीर्णं नरकं स न पश्यति।।
(महा. अनु. ६६/८)
अर्थात जो माघमास में ब्राह्मणों को तिल दान करता है, वह समस्त जंतुओं से भरे हुए नरक का दर्शन नहीं करता।
महाभारत के अलावा मत्स्यपुराण में भी माघ मास की महिमा का वर्णन है। उसके अनुसार-
पुराणं ब्रह्मवैवर्तं यो दद्यान्माघमासि च।
पौर्णमास्यां शुभदिने ब्रह्मलोके महीयते।।
मत्स्यपुराण( ५३/३५)
अर्थात माघमास में पूर्णिमा को जो व्यक्ति ब्रह्मवैवर्तपुराण का दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।

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