रविवार, 6 फ़रवरी 2011

छत्तीसगढ़ की खबरें

जबरदस्त पैदावार फसलों को रौंद रहे किसान
रायपुर प्रदेश में गोभी की जबरदस्त पैदावार ही किसानों के लिए मुसीबत बन गई। हालत यह कि सूबे के खेतिहरों को थोक में ५क् पैसे प्रति किलो का भाव भी नहीं मिल रहा। ऐसे मे किसान गोभी की खड़ी फसल पर ट्रैक्टर चला रहे या उखाड़ कर कूड़े में फेंक रहे हैं। हालांकि बाजार में फिलहाल गोभी चिल्हर में 5 से 10 रुपए/किलो बिक रही है। किसानों ने फसल नष्ट करना शुरू कर दिया है। महीनेभर पहले गोभी के भाव आसमान पर थे। यह थोक में 10 रुपए किलो तक बिकी, लेकिन अब इसका भाव ५क् पैसे किलो से नीचे चला गया है।

राजधानी के शास्त्री बाजार में शनिवार को 15 किलो का पैकेट पांच से 10 रुपए में बिका। यानी भाव इतना गिर गया कि गोभी को खेत से बाजार ले जाने का खर्चा भी वसूल नहीं हो पा रहा है। राजधानी के करीब गोमची, अटारी, कुम्हारी, मुरमुंदा, अछोटी सहित दो दर्जन गांवों में बड़े पैमाने पर गोभी की फसल लगी है।
किसान दिलीप गोहिल के 10 एकड़ में गोभी की फसल है। उन्हें 35 हजार रुपए प्रति एकड़ खर्च आया है लेकिन अभी तक 20-25 हजार रुपए की वसूली ही हो सकी है। अब दाम इतने गिर गए हैं कि तोड़ने के लिए घर से पैसे देने पड़ रहे हैं। इसलिए वे अपने तीन एकड़ की खड़ी फसल में ट्रैक्टर चला रहे हैं। रोटावेटर से गोभी को टुकड़ों में नष्ट कर रहे हैं।
उत्पादन से पैसे नहीं मिले तो कम से कम यह खाद के रूप में काम आ जाए। यही स्थिति महेंद्र वरू, सुनील सोलंकी, अशोक महिलांग, कमलेश चौहान की है। वे भी बैंक से फाइनेंस करके खेती कर रहे हैं, लेकिन इस साल कर्ज में डूब गए हैं। नंदन वन के पास गुमची गांव के किसान विजय चावड़ा ने तीन सौ पैकेट गोभी कूड़े में फेंक दी है।
बाहर भी नहीं भेज पा रहे
किसान इससे पहले के सालों में दूसरे राज्यों में गोभी भेजकर मुनाफा कमा लिया करते थे लेकिन इस वर्ष दूसरे राज्यों में भी खेती की अच्छी फसल हुई है। इस कारण राज्य से बाहर भेजना भी संभव नहीं हो पा रहा है।
05 हजार एकड़ में फसल
35 हजार रुपए/एकड़ का खर्च
20 करोड़ रुपए की लागत
60 करोड़ रुपए का नुकसान किसानों को
(5 रुपए/किलो बेचते तो 60 करोड़ का माल)
गोभी की बंपर पैदावार से दाम गिर गए हैं। किसान इसे फेंक रहे हैं। पड़ोसी राज्यों में भी गोभी की अच्छी पैदावार हो रही है।
टी श्रीनिवास रेड्डी, कोषाध्यक्ष शास्त्री मार्केट, रायपुर


अलमारी में बंद हैं सरकारी शिक्षा योजनाएं
रायपुर डीबी स्टार ने राज्य परियोजना कार्यालय द्वारा स्कूलों में संचालित योजनाओं की हकीकत जानने के लिए छापा मारा। सामने आया कि बच्चों की डाइट समेत अन्य जानकारी प्रदर्शित करने के लिए स्कूलों में नोटिस बोर्ड खरीदे ही नहीं गए हैं। इसी तरह मल्टीग्रेड-मल्टीलेवल किट और रेडियो तो अलमारियों में ही बंद पड़े हैं।

डीबी स्टार इन्वेस्टीगेशन में सामने आया कि सर्व शिक्षा अभियान के तहत केंद्र से राज्य को सत्र २क्क्९-१क् के लिए लगभग 18क्क् करोड़ रुपए मिले हैं। इन पैसों से शाला सुधार किया जाना है, लेकिन प्रदेश के बाकी जिले तो दूर राजधानी के स्कूलों में ही हालात बदतर हैं। राजीव गांधी शिक्षा मिशन के तहत सभी स्कूलों को डाइट डाटा बोर्ड खरीदने के आदेश हुए हैं इसके बावजूद तीन महीने बीतने के बाद भी इनका पालन नहीं हो सका।
ये लापरवाही तब है जबकि राज्य परियोजना कार्यालय से इनकी खरीदी के लिए राशि भेजी जा चुकी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 32,840 प्राइमरी और 13,439 मिडिल स्कूल हैं, जिन्हें हर साल क्रमश: पांच और सात हजार रुपए शाला अनुदान के रूप में दिए जाते हैं।
यह राशि कहां खर्च हो रही है इसका कोई हिसाब नहीं मांगा जाता। इसी तरह से स्कूलों में बच्चों को अंग्रेजी भाषा सिखाने के लिए रेडियो की खरीदी की गई थी। टीम के छापे में सामने आया कि अधिकतर जगह या तो वे खराब हो चुके हैं या अलमारी में बंद पड़े हुए हैं।
इसी तरह से मल्टीग्रेड-मल्टीलेवल किट योजना के तहत पठन सामग्री दिए जाने के लिए जो प्रावधान किए गए हैं उनका भी मखौल उड़ाया जा रहा है। बच्चों को पढ़ाने के लिए इनका इस्तेमाल करने के बजाय इन्हें अलमारियों के हवाले कर दिया गया है। इस तरह से लापरवाही बरतते पकड़े गए स्कूलों केजिम्मेदारों से जब सीधी बात की गई तो वे अपनी गलती दूसरों पर ढोलने लगे। वे अपने बचाव में कह रहे हैं कि निगरानी समितियां अपना काम नहीं कर रही हैं, इसलिए योजनाएं सफल भी नहीं हो पा रही हैं।

सब कुछ पेटियों में रखा हुआ है
रामेश्वर पांडे, हेडमास्टर

शासन के निर्देश के तहत स्कूलों में बच्चों को दिए जाने वाले भोजन समेत अन्य जानकारी प्रदर्शित करने के लिए व्हाइट बोर्ड खरीदना है। इसी में डाइट डाटा प्रदर्शित करना है। आपने खरीद लिया, कहां लगा रखा है?
—कौन सा बोर्ड, मुझे नहीं पता.. हमने तो इस कागज पर सब चीजें लिख रखी हैं। अभी तक कोई लिखित आदेश नहीं मिला है। मिलने पर खरीद लेंगे।
अच्छा बच्चों को खेल-खेल में पढ़ाने के लिए कोई सामग्री है क्या?
(हेडमास्टर ने सामग्रियां दिखाने के लिए बंद पेटियों को खोलना शुरू किया लेकिन उसमें भी कुछ नहीं निकला..)
—कुछ खिलौने तो थे.. यहीं कहीं रखे होंगे। हम उनका इस्तेमाल बच्चों को पढ़ाने के लिए करते हैं। क्योंकि खेल से जितनी जल्दी कोई चीज सिखाई जा सकती है उसे सामान्य तौर पर सिखाना कठिन होता है।
अच्छा तो अंग्रेजी सिखाने के लिए रेडियो तो जरूर होगा, बच्चों को कौन से प्रोग्राम सुनवाते हैं?
—(अलमारी में देखा तो नहीं मिला..) अभी बनने के लिए दिया है।
अब तो नहीं बजता रेडियो
स्कूल में खिलौने तो नहीं देखे। रेडियो.. बहुत पहले सुना था, लेकिन अब तो वह भी नहीं बज रहा है। हम तो रोज ऐसे ही पढ़ाई करते हैं.. इसके लिए खेल सामग्रियां भी नहीं मिलतीं।
मुस्कान, छात्रा, तीसरी कक्षा, शासकीय प्राथमिक कन्या शाला, गुढ़ियारी

सब पर नजर रखना संभव नहीं है
सर्व शिक्षा अभियान के तहत हर साल करोड़ों रुपए स्कूलों में बांटे जाते हैं। इनसे डाइट डाटा बोर्ड, पढ़ाई की सामग्री और रेडियो खरीदना है। बोर्ड पर स्कूल से संबंधित हर जानकारी लिखनी है, तो बाकी चीजों का इस्तेमाल बच्चों की पढ़ाई के लिए होता है। प्रत्येक स्कूल को इसका पालन करना है। जांच समितियां इसकी मॉनीटरिंग करती हैं।
के.आर. पिस्दा, संचालक, सर्व शिक्षा अभियान

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