सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

मां सरस्वती का पूजन वसंत पंचमी पर ही क्यों?

कहते हैं जब ब्रह्मा ने विष्णु की आज्ञा से सृष्टी की रचना की विशेषकर मनुष्यों की रचना के बाद जब ब्रम्हा ने अपनी रचना को देखा तो उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों और मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर उन्होने एक चर्तुभुजी स्त्री की रचना की जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी।

ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में जैसे चेतना आ गई। पवन चलने से सरसराहट होने लगी।तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा।
सरस्वती को भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन किया गया है। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी। वसंत पंचमी का दिन मां सरस्वती का जन्मदिन माना जाता है इसीलिए इस दिन उनकी आराधना की जाती है।

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