बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

हिंदू धर्म

'हिंदू' शब्द की उत्पत्ति एवं अर्थवास्तव में यह 'हिंदू' शब्द भौगोलिक (स्थान, देश से संबंधित) है। मुसलमानों को यह शब्द फारस अथवा ईरान में मिला था। फारसी कोषों में 'हिंद' और इससे व्युत्पन्न अनेक शब्द पाए जाते हैं। जैसे हिंदू, हिंदी, हिंदुवी, हिंदुवानी, हिंदुकुश आदि। इन शब्दों के अस्तित्व से स्पष्ट होता है 'हिंद' शब्द मूलत: फारसी है और उसका अर्थ 'भारतवर्ष' है। फारसी व्याकरण के अनुसार संस्कृत का 'स' अक्षर 'ह' में परिवर्तित हो जाता है। इस कारण 'सिंधु' (सिंधु नदी) शब्द 'हिंदू' हो गया। पहले हिंद के रहने वाले 'हिंदू' कहलाए। धीरे-धीरे संपूर्ण भारत के लिए इसका प्रयोग होने लगा। इसी प्रकार व्यापक रूप में भारत में रहने वाले लोगों का धर्म हिंदू धर्म कहलाया।हिंदू और हिंदुत्व की एक परिभाषा लोकमान्य तिलक ने प्रस्तुत की थी। जो इस प्रकार है:'सिंधु नदी के उद्गम स्थान (जहां से यह निकलती है) से लेकर हिंदमहासागर तक संपूर्ण भारत भूमि जिसकी मातृभूमि तथा पवित्र भूमि है वह हिंदू कहलाता है और उसका धर्म हिंदुत्व।'विश्वविख्यात महात्मा श्री विनोबाजी भावे ने हिंदू शब्द की परिभाषा एवं लक्षण इस प्रकार बताए हैं:जो वर्णों और आश्रमों की व्यवस्था में निष्ठा रखनेवाला, गो-सेवक, श्रुतियों (धार्मिक गं्रथों) को माता की भांति पूज्य मानने वाला तथा सब धर्मों का आदर करने वाला है,देवमूर्ति की जो अवज्ञा नही ंकरता, पुनर्जन्म को मानता और उससे मुक्त होने की चेष्टा करता है तथा जो सदा सब जीवों के अनुकूल बर्ताव को अपनाता है। वही 'हिंदू' माना गया है। हिंसा से उसका चित्त दु:खी होता है, इसलिए उसे 'हिंदू' कहा गया है।सनातन धर्म का अमिट स्वरूपप्राचीनकाल से लेकर वर्तमान समय तक अनेक जातियों, संप्रदायों, मतों, पंथों एवं वादों का भारत में आगमन होता रहा है। भारत में आदिकाल (प्रारंभ) से निवास करने वाली 'हिंदू' जाति ने अपने मूल सनातन धर्म जिसे बाद में 'हिंदू' धर्म कहा जाने लगा को सदैव सुरक्षित एवं परिपूर्ण बनाए रखा। विश्व के विभिन्न देशों में जन्मे एवं पनपे अनेक धर्मों एवं संस्कृतियों का अस्तित्व वर्तमान में लगभग समाप्त हो चुका है। जबकि हिंदू धर्म और संस्कृति उसी मूल स्वरूप में आज तक जीवित एवं नित-नवीन रूप मे विस्तारमान है। वैदिक धर्महिंदू जाति ने अपना धर्म श्रुति-वेदों से प्राप्त किया है। उनकी धारणा है कि वेद अनादि और अनंत हैं। वेदों का अर्थ है, भिन्न-भिन्न कालों में भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा आविस्कृत आध्यात्मिक सत्यों का संचित कोष। वेदों की घोषणा है- 'मैं शरीर में रहने वाली आत्मा हूं, मैं शरीर नहीं हूं। शरीर मर जाएगा, पर मैं नहीं मरूंगा। मैं इसमें विद्यमान (रहने वाला) हूं और जब यह शरीर नहीं रहेगा तब भी मेरा अस्तित्व बना रहेगा। मेरा एक अतीत (पिछला जन्म) भी है।'आत्मा का अमर स्वरूपहिंदू धर्म में शरीर को नश्वर तथा आत्मा का निवास स्थान बताया गया है। आत्मा को ही मनुष्य का मूल स्वरूप मानते हुए, उसे अजर-अमर अर्थात् अनश्वर माना गया है। आत्मा की अमरता के बाद, कर्मफल की मान्यता भी हिंदू धर्म की प्रधान विशेषता है। प्रत्येक कर्म का फल या परिणाम मिलना निश्चित माना गया है। मनुष्य को उसके जीवन में मिलने वाले दु:ख, सुख, अमीरी-गरीबी एवं मान-अपमान स्वयं उसके ही पिछले और वर्तमान के कर्मों का परिणाम है। हिंदू धर्म की मान्यता है कि मनुष्य की वर्तमान अवस्था उसके ही पूर्व कर्मों का परिणाम है और भविष्य में उसकी जो भी अवस्था होगी वह उसके वर्तमान कर्मों द्वार निर्धारित होगी।हिंदू धर्म में यह मान्यता है कि मनुष्य का मूल स्वरूप उसकी 'आत्माÓ है न कि शरीर। उसको (आत्मा) शस्त्र काट नहीं सकते। अग्नि जला नहीं सकती, जल भिगो नहीं सकता, और वायु सुखा नहीं सकती। हिंदुओं की ऐसी मान्यता है कि आत्मा एक ऐसा वृत्त है, जिसकी परिधि कहीं नहीं है, किंतु जिसका केंद्र शरीर में अवस्थित है, और मृत्यु का अर्थ है इस केंद्र का एक शरीर से दूसरे शरीर में स्थानांतरित हो जाना।सर्वव्यापी ईश्वरईश्वर के स्वरूप और गुणधर्मों के विषय में 'हिंदू' धर्म की मान्यता है कि वह परमात्मा सर्वत्र (सभी जगह रहने वाला) है। शुद्ध व पूर्ण पवित्र है, निराकार (जिसका आकार न हो), सर्व शक्तिमान है, सब पर उसकी पूर्ण दया है, वही सबका पिता है, सबकी माता है, वही सबका परमप्रिय सखा है, वही सभी शक्तियों का मूल है, वह हमें इस जीवन के उत्तरदायित्वों, कत्र्तव्यों को वहन करने की शक्ति दे क्योंकि वह इस संपूर्ण ब्रह्मांड का भार वहन करता है।जीवन का लक्ष्य मोक्षहिंदू धर्म के आधार स्तंभ वेद कहते हैं कि आत्मा दिव्यस्वरूप है, वह केवल पंच तत्वों (पृथ्वी, अग्रि, जल, वाय ुव आकाश) या पंचमहाभूतों के बंधनों में बंध गई है और उन बंधनों के टूटने पर वह अपने असली स्वरूप को प्राप्त कर लेगी। इसी अवस्था का नाम मुक्ति या मोक्ष है। जिसका अर्थ है स्वाधीनता, अपूर्णता के बंधनों से छुटकारा, जन्म-मृत्यु से छुटकारा। इस प्रकार हिंदुओं की सारी साधना, प्रणाली का लक्ष्य है - बिना रुके, बिना थके, लगातार के प्रयास द्वारा पूर्ण बन जाना, दिव्य बन जाना, ईश्वर को प्राप्त करना या साक्षात्कार करना।प्रमुख सिद्धांतबड़े-बड़े विद्वान ऋषियों के हजारों वर्षों के प्रयास के बल पर इस हिंदू धर्म का विकास किया है। हिंदू धर्म के प्रमुख सिद्धांत इस प्रकार हैं।1. वेद हिंदू धर्म के प्रामाणिक धर्म ग्रंथ।2. ईश्वर में विश्वास और नाना रूपों में उसकी उपासना।3. जीवन में नैतिक एंव मर्यादित आचरण पर अडिग रहना।4. ऋषि-मुनियों द्वारा बनाई गई आश्रम व्यवस्था को मानना। जो कि पूर्णत: वैज्ञानिक प्रणाली है।5. कर्म, पुनर्जन्म और मोक्ष के सिद्धांत पर पूर्ण विश्वास।
हिंदू धर्म के आधार ग्रंथहिंदू धर्म में वेदों को ज्ञान का भंडार एवं ईश्वरीय पुस्तक के रूप में मान्यता एवं सम्मान प्राप्त है। इनकी संख्या चार है जो कि इस प्रकार हैं :1. ऋग्वेद2. यजुर्वेद3. सामवेद4. अथर्ववेद
धर्मग्रंथहिंदुओं के धर्म शास्त्रों को दो भागों में बांटा गया है : श्रुति और स्मृति। श्रुति अर्थात् सुनी गई यानि ईश्वर के पास से साक्षात् सुनी गई वाणी। वेद से लेकर उपनिषद् तक श्रुतियों में आते हैं।स्मृति अर्थात् स्मरण की गई, स्मरण में रखकर याद करके और उसके बताए विषयों पर विचार करके जो शास्त्र रचे गए उनका नाम स्मृति है। स्मृतियों में छ: वेदांग, धर्मशास्त्र, इतिहास, पुराण और नीति के ग्रंथ आते हैं। धर्म शास्त्रों में धर्म सूत्र, स्मृतियों और निबंधकारों का साहित्य आता है।वेदांगों में कल्प का बहुत अधिक महत्व है। कल्प सूत्रों में यज्ञ भाग के संस्कारों की विधियां दी गई है। कल्प सूत्र के तीन भाग हैं: श्रौत, ग्रह्य सूत्र और धर्म सूत्र। श्रौत सूत्र में वैदिक यज्ञों का कर्मकाण्ड (पूजा पद्धति) है। ग्रह्य सूत्र में जन्म से लेकर मृत्यु तक किए जाने वाले पारिवारिक जीवन संबंधी कर्मों का विधान है, इसमें पाक यज्ञ भी है और पंच महायज्ञ भी। श्राद्ध तथा अन्य संस्कार भी धर्म सूत्रों में हैं। मुख्य धर्म सूत्र हैं : आपस्तंब, बौधायन, गौतमीय, हिरण्याकेशन। स्मृतियों की रचना भी आगे चलकर धर्मसूत्रों में से ही हुई है।स्मृतियां :हिंदू धर्म शास्त्रों में स्मृतियों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। स्मृतियों की संख्या 18 से लेकर 56 तक बताई जाती है। मनु, याज्ञवल्क्य, अत्रि, विष्णु, हारीत, उशनस, अंगिरा, कात्यायन, बृहस्पति, व्यास, गौतम, वशिष्ठ और पाराशर की मुख्य स्मृतियां मानी गई हैं। मनुस्मृति या मानव धर्म शास्त्र सबसे पुरानी स्मृति मानी जाती है। मनु स्मृति में 12 अध्याय है। इसके 12 अध्यायों में व्यक्ति, परिवार एवं समाज के लिए नियम कायदे दिए गए हैं।
धर्म निबंधस्मृतियों की प्रामाणिक संख्या को लेकर जब मत-भिन्नता (मतभेद, अलग-अलग राय) उत्पन्न हो गई और स्मृतियों की संख्या बहुत बढ़ गई तब धर्म निबंधों की रचना हुई। उस समय के राजाओं ने स्मृतियों का सारांश धर्म निबंधों के रूप में तैयार करवाया। स्मृति कल्पतरू, सबसे पुराना धर्म निबंध है। मुख्य धर्म निबंध हैं-ै स्मृति चंद्रीका, चतुर्वर्ग चिंतामणि, स्मृति रत्नाकर, धर्म रत्न, निर्णय सिंधु।
इतिहासहिंदू इतिहास में दो ग्रंथ माने जाते हैं रामायण और महाभारत। आदिकवि वाल्मीकि ने अयोध्या के राजा एवं विष्णु के दशावतारों में सातवें अवतार भगवान राम की पूरी कथा का वर्णन किया है। वाल्मीकि द्वारा रची गई रामायण की भाषा संस्कृत होने के कारण आधुनिक लोगों के लिए कठिन प्रतीत होती थी। तुलसीदास ने इसी रामायण को वर्तमान भाषा में रचकर सबके लिए सुलभ एवं सहज बना दिया। तुलसीकृत रामायण का नाम रामचरितमानस है। हिंदू धर्म में रामायण (भगवान राम की कथा) की अत्यधिक महत्ता है।महाभारत महर्षि वेदव्यास की रचना है। इसमें कोरवों और पाण्डवों के युद्ध का विस्तार से वर्णन है। यह संपूर्ण ग्रंथ बहुत बड़ा है। जिसे 18 पर्वों में विभाजित किया गया है। युद्ध वर्णन के साथ-साथ महाभारत में कई अन्य कथाएं एंव प्रेरणास्पद उपदेश दिए गए हैं।
पुराणपुराण शब्द का अर्थ प्राचीन या पुराना होता है। प्राचीनता के कारण ही उक्त ग्रंथों का नाम पुराण पड़ा। वेदों, उपनिषदें, स्मृतियों आदि धर्म शास्त्रों के गूढ़ (कठिन) गंभीर तत्वज्ञान को, सरल भाषा में कथा कहानियों के रूप में जिन ग्रंथों में वर्णित किया गया उन्हीं को पुराण कहते हैं। महाभारत और श्रीमद्भागवत के रचनाकार महर्षि वेदव्यास ही पुराणों के भी रचनाकार (लेखक)माने गए हंै। प्रमुख पुराणों की संख्या 18 मानी गई है। जो कि इस प्रकार हैं : ब्रह्मपुराण, पद्मपुराण, विष्णु पुराण, शिव पुराण, श्रीमद्भागवत पुराण, हरिवंश पुराण, मार्कण्डेय पुराण, अग्नि पुराण, भविष्य पुराण, ब्रह्मवैवर्त पुराण, लिंग पुराण, वाराह पुराण,स्कंद पुराण,वामन पुराण, कूर्म पुराण मत्स्य पुराण, गरुड़ पुराण, ब्रह्मांड पुराण।यदि समस्त पुराणों का अध्ययन करने पर इनका मूलभाव निकाला जाए तो वह है - परोपकार ही पुण्य है और स्वार्थ में किसी को कष्ट देना या हानि पहुंचाना ही सबसे बड़ा पाप है।
दर्शनशास्त्रजीवन और जीवन के उद्देश्य के विषय में एक विशेष दृष्टिकोण रखने वाले शास्त्र दर्शनशास्त्र कहलाते हैं। मूलत: भारतीय हिंदू दर्शन आस्तिक दर्शन है। किंतु अत्यंत कम प्रभाव व प्रसार वाले नास्तिक दर्शनों का भी अस्तित्व भारत में रहा है। अत: सुविधा की दृष्टि से हम दर्शन को दो भागों में बांटते हैं।
आस्तिक दर्शनवेदों का प्रमाण मानने वाले छ: दर्शन आस्तिक दर्शन कहलाते हैं जो इसप्रकार हैं: 1. न्याय दर्शन2. वैशेषिक दर्शन3. सांख्य दर्शन4. योग दर्शन5. मीमांसा दर्शन6. वेदांत दर्शन

नास्तिक दर्शन तीन माने गए हैं : 1. चार्वाक 2. जैन दर्शन 3. बौद्ध दर्शन

इन दर्शनों में बहुत गहरा तत्वज्ञान समाया हुआ है। मानव जीवन का उद्देश्य, जीवन का अर्थ, जीवन की सार्थकता, परमज्ञान की प्राप्ति, परमानंद एवं चिरशांति का मार्ग आदि मनुष्य जीवन से जुड़े महत्वपूर्ण विषयों का बड़ा महत्वपूर्ण एवं गहन विवेचन व विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है। सभी की यह मान्यता एवं अनुभव है कि आनंद प्राप्ति के लिए, मुक्ति के लिए, मोक्ष के लिए, निश्चित रूप से शुद्ध, पवित्र एवं नि:स्वार्थ जीवन जीना अनिवार्य आवश्यकता है।
नैतिक आचरण
हिंदू धर्म के भिन्न-भिन्न उपासना मार्गों में चाहे वह भक्ति मार्ग हो, ज्ञान मार्ग हो, योग मार्ग हो, चाहे तंत्र मार्ग हो सब में पवित्र नैतिक आचरण पर बल दिया गया है। पवित्र आचरण और नैतिकता हिंदू धर्म की आधार-शिला है। इसलिए हिंदू धर्म की प्रत्येक साधना का प्रारंभ यम और नियम से ही होता है। यम और नियम के बिना कोई भी साधना और धर्म कार्य सफल नहीं हो सकता। यम के भी कुछ अंग हैं:
ब्रह्मचर्य, दया, क्षमा, ध्यान, सत्य, नम्रता, अहिंसा, चोरी न करना, मधुर स्वभाव, इंद्रियों पर नियंत्रण।
यम की तरह नियम के भी कुछ अंग बताए गए हैं,जो कि इस प्रकार हैं: स्नान, मौन, उपवास, यज्ञ, स्वाध्याय, इंद्रियनिग्रह, गुरु सेवा, शौच, क्रोध न करना, प्रमाद न करना।
हिंदू धर्म में नारियों का सम्मान
हिंदू धर्म में नारियों का स्थान अत्यंत उच्च एवं पूजनीय है। नारियों के लिए हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि: ''यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते तत्र रमन्ते देवता'' हिंदू धर्म में मान्यता है कि जहां पर नारियों की पूजा एवं आदर-सम्मान होता है,वहां देवताओं (दैवीय शक्तियों) का वास होता है। जहां पर उनका सम्मान, सत्कार व सुख-सुविधा की व्यवस्था और परंपरा नहीं होती वहां दु:ख, दरिद्रता(गरीबी) अशांति, रोग-शोक एवं संकटों का वातावरण बना रहता है। जिस घर में दु:खी होकर नारियों के आंसू गिरते हैं। वहां से सुख, समृद्धि एवं शांति नष्ट हो जाते हैं।
हिंदू धर्म के प्रमुख ग्रंथ
यद्यपि हिंदू धर्म में अनेक ग्रंथ और शास्त्र हैं। जिनकी संख्या बहुत बड़ी है, किंतु जो सर्वाधिक प्रचलित एवं उपलब्ध हैं, वे इस प्रकार हंै :
1. गीता 2. महाभारत 3. रामायण 4. वेद (चार) 5. पुराण 6. उपनिषद्(१०८) 7. मनुस्मृति 8. सत्यार्थ प्रकाश (आर्य समाज)
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