बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

देवी-देवता, कल्पना या हकीकत?

देवता शब्द का अर्थ होता है देनेवाला। देवी-देवता संबधी मान्यता भारत में हजारों साल पहले से प्रचलित रही है। ऐसा करके प्राचीन मनुष्य ने अपनी सूक्ष्म और वैज्ञानिक बुद्धि का ही परिचय दिया है। सूक्ष्म और न दिखने वाली प्राकृतिक शक्तियों को देवी-देवताओं का प्रतीकात्मक रूप प्रदान किया गया। देवता मुख्यत: तीन प्रकार के होते हैं- वैदिक, पौराणिक और लोकदेवता। मोटे तौर पर लोकदेवताओं का वेद-पुराणों में या अन्य शास्त्रों में उल्लेख नहीं हुआ है। लेकिन किन्हीं का मूल वेद-पुराणों में ढूढा जा सकता है।
प्राचीनकाल में भारत में आदिवासी-अनार्य भी रहते थे। उनका धर्म आर्यों से कुछ भिन्न था। अनार्य लोग प्राय: भूत-पिशाच, यक्ष, पशु, सर्प (नाग), लिंग इत्यादि को देव मानकर उनकी उपासना करते थे। अनार्यों के ऐसे भयंकर एवं कुछ मलिन देवों का प्रभाव आर्य-देवों पर भी पड़ा। इसके उपरांत सतीप्रथा, वीर पूजा, नारीशक्ति प्रभाव, कुदरत के रहस्य समझने की अशक्ति, भय इत्यादि कारणों से सती, वीर, पीर, क्षेत्रपाल, नाग, देव-देवियों के विभिन्न ग्राम्य-स्वरूप, स्थान-देवता, ग्राम देवता, कुल देवता आदि का ख्याल अस्तित्व में आया। इसतरह ऐसे असंख्य लोक देव-देवियां भारत के सभी भूभागों में विभिन्न नामों से बहुधा सामाजिक दृष्टि से पिछड़ी जातियों में, लोक समाज में व्याप्त हो गए, लोक समुदाय श्रद्धापूर्वक उनकी सीधी-सादी उपासना करने लगा। आज भी लोगों में लोकदेवताओं के प्रति प्रबल श्रद्धा है

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