बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

दोस्ती में न तोड़े भरोसा

कहते हैं सच्चा दोस्त वो आईना होता है जिसमें आप अपना अच्छा और बुरा दोनों ही देख सकते हैं। इसलिए समय कैसा भी हो अपने दोस्तों का साथ कभी न छोड़े और न ही दोस्ती में कभी किसी को धोखा दें । क्योंकि दोस्ती वो दौलत है जो हमेशा हमारे साथ रहती है परिस्थिति जैसी भी हो एक सच्चा दोस्त हमेशा हमारे साथ रहता है।
ऐसा ही एक उदाहरण है महाभारत में द्रोणाचार्य और दु्रपद की दोस्ती। दोनों ही भारद्वाज ऋषि के आश्रम में अध्ययन करते थे दोनो ही एक दूसरे के परम मित्र थे। राजपद मिलने से पहले राजा द्रुपद ने अपने मित्र द्रोणाचार्य को यह वादा किया कि उसे जब भी जरूरत होगी तो वह अपना आधा राज्य उसे दे देगा। एक समय द्रोणाचार्य विकट परिस्थितियों से गुजर रहे थे उनके पास न धन था न खाने को खाना तब उन्हें अपने परम मित्र दु्रपद की याद आई और वे अपने परिवार के साथ द्रुपद के महल में पहुंचे। जब द्वारपाल उनका संदेश लेकर दु्रपद के पास पहुंचे तो दु्रपद ने उन्हें पहचानने से ही मना कर दिया। राजा दु्रपद ने द्रोणाचार्य का खूब अपमान भी किया।

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