बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

क्यों लड़ते हैं देवता और असुर ?

परमात्मा ने सुख प्राप्ति के लिए इन्द्रियाँ बनायी हैं। इन्द्रियों के माध्यम से मन ही सुख भोगता है। स्मरण-शक्ति के कारण मन पूर्व में भोगे गये सुख को याद रखता है। इस सुख को पाने के लिए मन अनुचित साधन भी अपना लेता है। ईश्वर ने मन को देवत्व प्रदान किया है। किन्तु इन्द्रिय सुख की प्रबल कामना मन को असुर बना देती है। असुर का अर्थ है बुराई को गति देने वाला। अच्छे संस्कार मन को अच्छाई या देवत्व के गुण अपनाने को प्रेरित करते हैं। इन्द्रिय सुख का लोभ मन को बुराई की ओर ढकेल देता है जिससे कोई इंसान बलात्कार, छल, कपट आदि में संलग्न हो जाता है। दो विपरीत धाराओं में मन का जाना ही देवासुर संग्राम है। मन ही देवता है, मन ही राक्षस है। मानसिक द्वन्द्व को ही देवासुर संग्राम क ी प्रतीकात्मक भाषा में बताया गया है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें