शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

पीपल पूजा दूर करती है शनि पीड़ा

हिन्दू धर्म में प्रकृति को भी देव रूप मानता है। जिससे कोई भी इंसान चाहे वह धर्म को मानने वाला हो या धर्म विरोधी सीधे ही किसी न किसी रूप में प्रकृति और प्राणियों से प्रेम के द्वारा जुड़कर धर्म पालन कर ही लेता है।

कुदरत की देव रूप उपासना का ही अंग हे पीपल पूजा। पीपल को अश्वत्थ भी कहा जाता है। शास्त्रों के मुताबिक पीपल देववृक्ष होकर इसमें त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु और महेश का वास माना जाता है। ब्रह्मा का स्थान जड़ में, विष्णु का मध्य भाग या तने और अगले भाग यानि शाखाओं में शिव का स्थान है। इस वृक्ष की टहनियों में त्रिदेव सहित इंद्र और गो, ब्राह्मण, यज्ञ, नदी और समुद्र देव वास भी माना जाता है। इसलिए यह वृक्ष पंचदेव, ऊंकार या कल्पवृक्ष के नाम से भी पूजित है।
पीपल वृक्ष की पूजा से सांसारिक जीवन के अनेक कष्टों का दूर करती है। यहां हम ग्रहदोष खासतौर पर शनि पीड़ा का अंत करने के लिए पीपल पूजा की सरल विधि जानते हैं -
- स्नान कर सफेद वस्त्र पहन पीपल के व़ृक्ष के नीचे की जमीन गंगाजल से पवित्र करें।
- दु:खों को दूर करने के मानसिक संकल्प के साथ स्वस्तिक बनाकर पीपल में सात बार जल चढ़ाएं।
- सामान्य पूजा सामग्रियों कुंकुम, अक्षत, फूल चढ़ाकर भगवान विष्णु, लक्ष्मी, त्रिदेव, शिव-पार्वती का ध्यान करें। इन देवताओं के सरल मंत्रों का बोलें।
- इसके बाद पीपल वृक्ष के आस-पास वस्त्र या सूत लपेट कर परिक्रमा करें। परिक्रमा के समय भी भगवान विष्णु का ध्यान जरूर करते रहें। यथाशक्ति मिठाई का भोग लगाएं।
- अंत में घी या तिल के तेल का दीप जलाकर शिव, विष्णु या त्रिदेव की आरती करें।
- अंत में शनि पीड़ा दूर करने और अपने दोषों के लिए क्षमा प्रार्थना करें।
धार्मिक मान्यताओं में पीपल वृक्ष की मात्र परिक्रमा से ही शनि पीड़ा का अंत हो जाता है।

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