गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

मैं स्कूल नहीं जाऊंगी

मैं स्कूल नहीं जाने वाली। क्यूंकि निन्नी आ रही है। मुझे सर्दी लग गई है। स्कूल में मुझे कोई पसंद नहीं करता।
मैं स्कूल नहीं जाने वाली। क्यूंकि दो बच्चे हैं वहां। मुझसे इत्ते बड़े। मुझसे ताकतवर। जब उनके बगल से गुजरती हूं तो बाहें फैलाकर रास्ता रोक लेते हैं वे मेरा। डर लगता है मुझे।
डर लगता है मुझे। मैं स्कूल नहीं जाने वाली। स्कूल में, व़क्त तो बस ठहर जाता है। सब कुछ छूट जाता है बाहर। स्कूल के गेट के बाहर।
मिसाल के तौर पर घर का मेरा कमरा। मेरी मम्मी भी, और पापा, खिलौने मेरे। और बालकनी पर वो परिंदे। जब स्कूल में होती हूं और उनके बारे में सोचती हूं तो रोना आ जाता है मुझे। बाहर देखने लगती हूं खिडकी से, वहां बादल होते हैं न।
मैं स्कूल नहीं जाने वाली। क्यूंकि वहां कुछ भी अच्छा नहीं लगता मुझे।
उस दिन एक पेड़ की तस्वीर बनाई थी मैंने। टीचर ने कहा, ‘यह सचमुच एक पेड़ ही है, बहुत अच्छे।’ मैंने फिर एक दूसरी बनाई। इसमें भी कोई पत्तियां नहीं थीं।
फिर उन्हीं में से एक बच्चा मेरे पास आया और मेरा मजाक उड़ाने लगा।
मैं स्कूल नहीं जाने वाली। रात को सोते समय जब अगले दिन स्कूल जाने के बारे में सोचती हूं तो दहशत होती है बहुत। मैं कहती हूं, ‘मैं स्कूल नहीं जाने वाली।’ वे बोलते हैं, ‘ऐसा कैसे कह सकती हो तुम? स्कूल तो सभी लोग जाते हैं।’
सभी लोग? तो फिर जाने दो न सभी को। आखिर क्या हो जाएगा जो मैं घर पर ही रुक जाऊं? कल गई थी न मैं, नहीं क्या? कैसा रहेगा अगर मैं कल न जाऊं, और फिर उसके अगले दिन चली जाऊं?
काश मैं घर पर होती अपने बिस्तर पर। या अपने कमरे में। काश कि मैं और कहीं भी होती सिवाय उस स्कूल के।
मैं स्कूल नहीं जाने वाली। बीमार हूं मैं। दिख नहीं रहा आपको? जैसे ही कोई कहता है स्कूल, मैं बीमार हो जाती हूं, पेट दर्द करने लगता है मेरा। वो दूध भी नहीं पिया जाता मुझसे।
वह दूध नहीं पीना मुझे, मुझे कुछ नहीं खाना, और न ही स्कूल जाने वाली हूं मैं। कितनी परेशान हो गई हूं। मुझे कोई पसंद नहीं करता। वे दोनों बच्चे हैं वहां। बाहें फैलाकर रास्ता रोकते हैं वे मेरा।
टीचर के पास गई थी मैं। टीचर ने कहा, ‘मेरे पीछे-पीछे क्यूं लगी हो?’ अगर आप नाराज न हों तो मैं आपको कुछ बताऊँ। मैं तो हमेशा टीचर के पीछे ही लगी रहती हूं, और टीचर हमेशा यही बोलती रहती हैं कि ‘मेरे पीछे-पीछे न आओ।’
मैं स्कूल नहीं जाने वाली, कब्भी नहीं। क्यूं? क्यूंकि मैं बस वहां जाना नहीं चाहती, इसीलिए और क्यूं।
रेसेस के वक़्त मैं बाहर भी नहीं जाना चाहती। जब सब लोग मुझे भूल चुके होते हैं तभी रेसेस होता है। फिर सब कुछ एकदम से घालमेल हो जाता है, सभी भागने लगते हैं।
टीचर मुझे घूर कर देखने लगती हैं। और बस इतना कहूंगी कि वे इतनी अच्छी नहीं लगतीं। मैं स्कूल नहीं जाना चाहती। वहां एक बच्चा है जो मुझे पसंद करता है, बस वही है जो मुझे अच्छे से देखता है। किसी से बताना मत, लेकिन मुझे वह बच्चा भी नहीं पसंद।
मैं बस वहां बैठी-पड़ी रहती हूं। कितना अकेलापन महसूस होता है मुझे। आंसू लुढ़कते रहते हैं मेरे गालों पर। मुझे स्कूल बिलकुल भी पसंद नहीं।
मैं स्कूल नहीं जाना चाहती, कहती हूं मैं। फिर सुबह हो जाती है और वे मुझे स्कूल ले जाते हैं। मैं हंस भी नहीं पाती। मैं अपने सामने एकदम सीधा देखती रहती हूं, रोना आ जाता है मुझे। मैं अपनी पीठ पर फौजियों जितना बड़ा बस्ता लादे पहाड़ी पर चढ़ती हूं, और निगाहें पहाड़ी चढ़ते हुए अपने नन्हे पैरों पर टिकाए रहती हूं। कितना भारी है सब कुछ : मेरी पीठ पर लदा बस्ता, मेरे पेट में पड़ा गर्म दूध। रोना चाहती हूं मैं।
मैं स्कूल में दाखिल होती हूं। लोहे का काला फाटक मेरे पीछे बंद होता है। मैं रो पड़ती हूं, ‘मम्मी, देखो, तुमने मुझे भीतर लाकर छोड़ दिया।’ फिर मैं अपनी कक्षा में जाकर बैठ जाती हूं। बाहर उन बादलों में से कोई एक बादल हो जाना चाहती हूं मैं। इरेजर्स, कापियां, और पेन : मुर्गियों को खिला दो यह सब!
(www.bhaskar.com)

1 टिप्पणी:

  1. स्कूल जाना बहुत जरुरी है...
    ______________________________
    'पाखी की दुनिया' : इण्डिया के पहले 'सी-प्लेन' से पाखी की यात्रा !

    जवाब देंहटाएं