रविवार, 20 फ़रवरी 2011

केशदान की परंपरा है यहां क्योंकि...

तिरूपति बालाजी के प्रति हिंदूओं की अटूट आस्था है। ऐसा माना जाता है यहां साक्षात् भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी विराजमान हैं। यहां बालाजी की करीब 7 फीट ऊंची श्यामवर्ण की प्रतिमा स्थापित है। वैसे तो यहां कई परंपराओं का चलन है परंतु केशदान की अनूठी प्रथा सर्वाधिक प्रचलित है।
बालाजी मंदिर पर केशदान को लेकर कई मान्यताएं हैं। यहां केश समर्पित करने का अर्थ है कि श्रद्धालु अपना अहंकार, बुराइयां, जाने-अनजाने किए गए पाप को भगवान के चरणों में समर्पित कर बालाजी की नि:स्वार्थ भक्ति हृदय में स्थापित करता है। यहां केशदान करने के बाद भगवान बालाजी के चरणों में श्रद्धालु की भक्ति और अधिक बढ़ जाती है।
जिससे भगवान भक्त की सारी मनोकामनाएं पूर्ण कर उसे सुख और समृद्धि का वर प्रदान करते हैं। कई लोग अपनी मनोकामनाएं पूर्ण होने पर भी यहां केशदान करते हैं।प्राचीन काल में यह परंपरा लोग अपने-अपने घरों में ही संपन्न किया करते थे। परंतु आज बालाजी मंदिर के पास स्थित कल्याण कट्टा नामक स्थान पर सामूहिक रूप से केशदान संस्कार किया जाने लगा है। यहां केशदान के बाद श्रद्धालु पुष्करिणी में स्नान कर बालाजी के दर्शन करते हैं। जिससे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
(www.bhaskar.com)

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