बुधवार, 9 मार्च 2011

हर सिक्के के दो पहलू होते हैं

हम में से अधिकांश लोग सिर्फ अपने अवगुण या दूसरों के अवगुणों को देखने या गिनाने में लगें रहते हैं, इसलिए हमारा ध्यान किसी की अच्छाई पर जाता ही नहीं। क्योंकि हमें तो बुराई देखने की आदत हो चुकी है। हम हर जगह बुराई ढुंढने में इतने मशगुल हैं, कि किसी के बुरे पहलु में हम अच्छाई ढूंढने की सोच भी नहीं पाते जबकि यह बात हम सब जानते हैं कि हर बुराई के पीछे कोई ना कोई अच्छाई छुपी होती है।
एक गांव में किसान रहता था। उस गांव में उसे पानी भरने अपने घर से बहुत दूर जाना पड़ता था। उसके पास पानी लेकर आने के लिए दो बाल्टियां थीं। उनमें से एक बाल्टी में छेद था। किसान रोज उस कुएं से पानी भरकर जब तक अपने घर तक लाता था। वह पानी सिर्फ डेढ़ बाल्टी रह जाता था, क्योंकि छेद वाली बाल्टी का पानी आधा ही रह जाता था। अब वो बाल्टी जिसमें कोई छेद नहीं था। उसे धीरे-धीरे घमंड आने लगा। वह उस छेद वाली बाल्टी से बोली तुम में छेद है। तुम किसी काम की नहीं मालिक बेचारा तुम्हे जब तक भरकर घर लेकर आता है, तुम्हारा आधा पानी खाली हो जाता है। यह सुनकर वह बाल्टी दुखी हो जाती उसे दूसरी बाल्टी रोज ताना मारती थी।
एक दिन उस बाल्टी ने दुखी होकर अपने मालिक से कहा: मालिक आप मुझसे यदि परेशान हो गये हैं तो मेरे इन छेदों को बंद क्यों नहीं कर देते या फि र आप मुझे छोड़कर नई बाल्टी क्यों नहीं खरीद लेते तो किसान मुस्कुराते हुए बोला तुम इतनी दुखी क्यों हो तुम जानती हो कि तुम्हे मैं जिस रास्ते से भरकर यहां तक लाता हूं। उस रास्ते के एक ओर हरियाली है वहां कई छोटे-छोटे सुन्दर पौधे उग आए हैं। दूसरी ओर जहां से बिना छेद वाली बाल्टी को लेकर निकलता हूं। वहां हरियाली नहीं है सिर्फ सूखा है तो अगर वो बिना छेद वाली बाल्टी मेरे घर के सदस्यों की प्यास बुझा रही हो तो तुम भी तो कई नन्हे पौधों को जीवनदान दे रही हो बाल्टी यह सुनकर खुश हो गई उसे अपनी अहमियत का एहसास हो गया।
(www,bhaskar.com)

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