सोमवार, 4 अप्रैल 2011

एक सपने के 75 साल

अतिमानवीय किरदार फैंटम ने आधुनिक दुनिया में जिस तरह पिछली कई पीढ़ियों के किशोरों को आकर्षित और सम्मोहित किया है, वैसा संभवत: किसी भी दूसरे किरदार ने नहीं। इसी फैंटम ने इस वर्ष अपने जीवन के 75 साल पूरे किए हैं। आखिर क्या है इस विलक्षण किरदार की लोकप्रियता का राज?..
फैंटम का नाम आते ही उस महानायक की तस्वीर मन में उभरती है जिसका शरीर रंगीन नकाब से और आंखें काले चश्मे से ढंकी रहती थीं। वह खोपड़ी जैसी गुफा में रहता था। घोड़ा और बाज़ उसके वफादार साथी थे। उसका असली चेहरा किसी ने नहीं देखा था। किंवदंती यह थी कि जिसने नकाबपोश फैंटम का असली चेहरा देख लिया उसकी मृत्यु निश्चित है। वह जिसको अपना दोस्त समझता था उसके ऊपर एक खास तरह का निशान अंकित करता था। जिसे वह दुश्मन मानता था उसके ऊपर खोपड़ी के चिह्न् वाली अंगूठी से निशान बना देता था। ऐसा महानायक जिसने अन्याय, लोभ, ज्यादती से लड़ने का संकल्प लिया था। कहते हैं कि दशकों तक उसने दुनिया भर के किशोरों के मन में बुराई से लड़ने का आदर्श स्थापित किया। वह फैंटम 75 साल का हो गया। मानवता को शोषण और बुराई से मुक्ति दिलवाने का एक सपना 75 साल का हो गया।
1936 में जब लेखक-काटरूनिस्ट ली फॉक ने फैंटम की कल्पना को साकार रूप दिया तब उन्होंने सोचा भी नहीं होगा कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब दस करोड़ लोग उसे दुनिया भर में रोज पढ़ेंगे। कॉमिक्स की दुनिया के इस पहले सुपरहीरो फैंटम के जन्म की दास्तान बड़ी दिलचस्प है। ली फॉक ने सबसे पहले ‘मैंड्रेक’ जादूगर की कहानी को अखबार में कॉमिक्स पट्टी की तरह प्रस्तुत करना शुरू किया। जब वह चल निकली तो अमेरिका की एक प्रसिद्ध फीचर एजेंसी ने उनसे कहा कि कई अखबारों में एक साथ छपने के लिए वे कॉमिक्स का कोई नया किरदार इजाद करें। वह अमेरिका में महामंदी का दौर था। उस दौर में उन्होंने एक ऐसे पात्र की कल्पना की जो हमारी-आपकी तरह इंसान था। लेकिन उसके आदर्श ज़रा ऊंचे थे। वह समाज को अपराध और अपराधियों से मुक्ति दिलाना चाहता था। जिनको वह मित्र समझता था, उनकी रक्षा में तत्पर रहता था। मंदी के उस काल में उसमें अमेरिका के लोगों को एक महानायक दिखाई देने लगा जो उनकी रक्षा कर सकता था, मुक्ति दिला सकता था। वह आधुनिक किस्से-कहानियों की दुनिया का पहला ऐसा चरित्र था जो अमानवीय नहीं था। वह तो एक सामान्य मनुष्य था जो अपनी बुद्धि और कौशल से ऐसे काम कर जाता था कि लोगों को वह अतिमानवीय प्रतीत होता। कहते हैं कि मंदी के उस दौर में फैंटम ने अमेरिकी किशोरों में आत्मविश्वास भरने का काम किया। उनको भविष्य के प्रति आशावान बनाया।
देखते ही देखते फैंटम का चरित्र इतना लोकप्रिय हो गया कि दुनिया के अनेक देशों की अनेक भाषाओं में अपने मूल रूप में लेकिन अलग-अलग नामों से अवतरित होने लगा। एक ज़माने तक यह सबसे अधिक पढ़े जाने वाले कॉमिक्स किरदार में शुमार किया जाता रहा। अफ्रीका के जंगलों में कहीं बंगाला कबीले में रहने वाले इस शांतिदूत में ऐसी रहस्मय वास्तविकता थी कि जो भी इसे पढ़ता सहज भाव से इसकी ओर आकर्षित हो जाता। अमेरिका में वह उपयोगितावादी दर्शन का ज़माना था, जिसका उद्घोष था कि मनुष्य ही प्रत्येक वस्तु के केंद्र में है। वैसे में मानवीय संभावनाओं से भी परे के इस मानवीय चरित्र ने घर-घर में अपने को स्थापित कर लिया। इस कदर कि 1999 में अपनी मृत्यु तक ली फॉक बिला नागा फैंटम के इक्कीसवें अवतार की कहानियों से पाठकों को रूबरू करवाते रहे। न जाने कितनी पीढ़ियां उसके सम्मोहन के साथ बड़ी हुई और बाद में उसके नॉस्टेल्जिया में जीती रहीं।
जब संसार में इसकी धूम मची थी तो भारत कैसे इसके आकर्षण से अछूता रहता। पहले 1940 के दशक में उस वक्त की एक प्रमुख अंग्रेजी साप्ताहिक पत्रिका में कॉमिक स्ट्रिप के रूप में इसका आगमन हुआ। लेकिन इसका असली जादू छाया 1964 में इंद्रजाल कॉमिक्स के प्रकाशन के साथ। मार्च 1964 में जब इसके माध्यम से फैंटम अपने भारतीय अवतार में आया, तब भारतीय मानस पर चीन युद्ध की हताशा-निराशा छाई हुई थी। वैसे में बुरी ताकतों को दूर भगाने वाले फैंटम में पाठकों ने शायद एक नया अवतार देखा। आखिर अवतार समय-समय पर मनुष्य रूप में ही तो आते हैं, मनुष्य को दुखों से मुक्ति दिलाने के लिए। कहा जाने लगा कि असल में फैंटम के चरित्र पर कहीं न कहीं भारतीय मिथकों की छाया है। इसके सूत्र भी ढूंढे जाने लगे। कहा गया कि फैंटम को ईजाद करने से पहले ली फाक पूरब की यात्रा पर आए थे। कहा यह भी गया कि जिस तरह का जादुई माहौल, रहस्यमयता उनके किस्सों में है, वह पूरब के देशों की लोककथाओं में ही पाई जाती है। अंग्रेजी के साथ-साथ हिंदी में भी इसका प्रकाशन होने लगा।
हिंदी में इसके पात्रों के नाम बदल गए। फैंटम हिंदी संस्करण में वेताल हो गया। फैंटम का क़स्बा बेंगाला हिंदी में देंकाली हो गया। लेकिन इससे फैंटम का जादू कम नहीं हुआ। इसका प्रकाशन कॉमिक्स के रूप में प्रतिमाह शुरू हुआ था। तीन-चार सालों में ही मांग इतनी बढ़ी कि इसकी कहानियां हर पखवाड़े आने लगीं। देखते-देखते इनका प्रकाशन साप्ताहिक होने लगा। 1970 के दशक और अस्सी के दशक के पूर्वार्ध में बड़े हो रहे किशोरों के नौस्टेल्जिया के स्थायी भाव की तरह है फैंटम का यह मायावी दिखने वाला लेकिन इंसानों जैसा वास्तविक चरित्र। हिंदी के अलावा कन्नड़, तमिल, मराठी, बंगाली, गुजराती, मलयालम अदि भाषाओं में भी फैंटम की कहानियां पहुंचीं। यह बात अलग है कि भारत में सबसे अधिक लोकप्रिय यह हिंदी और अंग्रेजी में ही रहा तथा इन्हीं दो भाषाओं में यह सबसे दीर्घजीवी भी साबित हुआ। सबसे अधिक फैंटम कॉमिक्स भी इन्हीं दोनों भाषाओं में छपे। फैंटम के अलावा ली फॉक के दूसरे कॉमिक्स पात्र मेंड्रेक जादूगर का भी प्रकाशन अंग्रेजी-हिंदी में हुआ।
फैंटम की सफलता से प्रेरित होकर उसी की तर्ज पर भारतीय चरित्र भी गढ़े जाने लगे। बहादुर नामक ऐसा ही एक चरित्र था जिसकी कहानियां स्वतंत्र रूप से प्रस्तुत की जाने लगीं। 1990 तक इनका प्रकाशन अबाध रूप से होता रहा। इस दौरान इंद्रजाल कॉमिक्स के कुल 803 अंक प्रकाशित हुए, जिनमें से 414 अंक फैंटम या वेताल के थे। तब आज की तरह हर चीज़ का बाज़ार खड़ा करने का चलन नहीं शुरू हुआ था लेकिन फैंटम के प्रतीक-चिह्न् दुकान में बिका करते थे। यहां तक कि खोपड़ी के निशान वाली वह अंगूठी भी जिसे फैंटम अपने दुश्मनों के ऊपर जड़ दिया करता था। टेलीविजन के दौर में 21 पीढ़ियों से बुराई को मिटाने का संकल्प लिए इस महानायक की कहानियां गुम होने लगीं। टीवी ने बच्चों की कल्पना को अति-मानवीय पंख लगा दिए। लेकिन आज भी इसका प्रकाशन सिर्फ अमेरिका ही नहीं, कई अन्य देशों में कॉमिक स्ट्रिप के रूप में जारी है। उसके सिनेमा और टीवी अवतारों ने कुछ पाठक भले छीन लिए हों, लेकिन आज भी उसके किस्सों का आकर्षण बना हुआ है।
तकनीक आधारित मनोरंजन के दौर में फैंटम के कथा रूप भी बदलते जा रहे हैं। फैंटम एक ऐसा काल्पनिक चरित्र है जो अलग-अलग माध्यमों में सबसे अधिक बार प्रकट हुआ है। 1940 के दशक में फैंटम की कहानियों पर उपन्यास लिखे गए। डेल रॉबर्टसन का लिखा हुआ द सन ऑफ द फैंटम ऐसा ही एक उपन्यास है। यह एक ऐसा कॉमिक्स-चरित्र साबित हुआ जिसे फिल्म और टेलीविजन माध्यमों ने सबसे अधिक आजमाया। 1943 में पहली बार इसकी कहानियों को लेकर छोटे-छोटे सिनेमाओं की श्रंखला का निर्माण हुआ। 15 कड़ियों वाली यह फिल्म भी कॉमिक्स की तरह ही सफल रही। अनेक टेलीविजन धारावाहिक भी बने। 1994 में टीवी धारावाहिक आया ‘फैंटम : 2040’, जिसमें 24वें फैंटम के कारनामे दिखाए गए। इसमें उसे चोरों, डकैतों, समुद्री लुटेरों से लड़ते हुए नहीं दिखाया गया। इसमें उसे धरती का पर्यावरण बिगाड़ने का प्रयास करने वाले दुष्ट वैज्ञानिकों से लड़ना पड़ता है। फैंटम के परंपरागत सहयोगी घोड़ा और बाज़ भी उसके साथ नहीं होते। लेकिन बुराई से लड़ने का संकल्प वही रहता है जिसके लिए फैंटम की 23 पीढियां कुर्बान हुईं।
हमारे यहां भी 1997 में दूरदर्शन पर फैंटम के भारतीय और हिंदी अवतार पर ‘वेताल-पचीसी’ नामक धारावाहिक का प्रसारण हुआ जो आधे-आधे घंटे के करीब 50 एपिसोड तक चला। बाद में कुछ फि़ल्में भी बनीं। जब इंटरनेट का ज़माना आया तो अनेक उत्साही लोगों ने फैंटम की कॉमिक्स कथाओं को ऑनलाइन उपलब्ध करवाना शुरू किया। आज फैंटम कॉमिक्स को फुर्सत में ऑनलाइन पढ़ा जा सकता है। किसी न किसी रूप में फैंटम बार-बार आ जाता है। इसकी कल्पना और उसे साकार करने वाले ली फॉक ने कहा था कि असल में रॉबिन हुड की कहानियों से प्रेरित होकर उन्होंने फैंटम की कहानी का ताना-बाना बुना था। समाज में असमानता, अपराध बढ़ता गया है और हर दौर में एक ऐसे पात्र की आवश्यकता बनी रही है जो रक्षा करे, आगे बढ़ने का संकल्प मन में पैदा करे। अकारण नहीं है कि फैंटम से प्रेरित चरित्र भी बड़ी संख्या में आए।
हाल में ही फैंटम के चरित्र का विश्लेषण करते हुए एक विद्वान ने लिखा कि फैंटम अगर आज के दौर में हुआ होता तो शायद इतना सफल नहीं होता। उन्होंने कई कारण गिनाए। एक तो उस तरह के आदर्शो का समाज से धीरे-धीरे अंत होता जा रहा है जिनके साथ फैंटम जीता रहा। उनका यह भी कहना था कि अपनी तमाम सच्चाई, ईमानदारी, निष्ठा के बावजूद फैंटम आखिरकार गोरी नस्ल का था। आज अस्मिताओं के संघर्ष के ज़माने में गोरे रक्षक नायक को तीसरी दुनिया के देशों में शायद ही वह लोकप्रियता मिल पाती जो दुनिया भर में करीब 50 सालों तक उसे किसी न किसी रूप में उस ज़माने में मिली थी। बहरहाल, 75 साल हो गए, बड़े-बड़े नायकों का अंत हो गया, लेकिन फैंटम है कि आज भी अपनी काल्पनिकता में किसी न किसी रूप में नायक की संभावना को बनाए हुए है।
नकाबपोश फैंटम
फैंटम का प्रकाशन इस वर्ष फरवरी से प्रतिदिन ब्लैक एंड व्हाइट स्ट्रिप और मई से प्रति रविवार रंगीन स्ट्रिप के रूप में प्रारंभ हुआ जो अविराम आज भी जारी है। इस बीच इसमें कई कहानियों और किरदारों की रचना की गई।
193८ आक्रामक सुपरमैन
इस वर्ष लेखक जेरी सीगल और कलाकार जोए शुस्टर ने मिलकर सुपरमैन नामक अतिमानवीय किरदार की रचना की। यह प्रारंभ में कठोर और आक्रामक चरित्र था जिसे बाद में थोड़ा विनम्र और शालीन बनाया गया।
193९ अजीबोगरीब बैटमैन
आर्टिस्ट बॉब केन और बिल फिंगर ने फैंटम की तर्ज पर एक नया किरदार बैटमैन गढ़ा जो काफी लोकप्रिय हुआ। 1960 में अमेरिका में बैटमैन टीवी सीरियल बना तो 1989 में इसी नाम से बनी फिल्म से वह दुनिया भर में पहचाना गया।
1962 फुर्तीला स्पाइडरमैन
लेखक स्टेन ली और आर्टिस्ट स्टीव डिटको ने एक और अतिमानवीय चरित्र स्पाइडरमैन का सृजन किया जिस पर 1967-70 में टीवी धारावाहिक और 2002-07 में एक के बाद एक तीन फिल्मों का निर्माण हुआ।
1996 बड़े पर्दे पर फैंटम
अनेक माध्यमों में अनेक अवतारों के बावजूद बड़े परर्दे पर फैंटम अपने जन्म के 40 साल बाद अवतरित हुआ जब पैरामाउंट पिक्चर्स ने इसी नाम से फिल्म बनाई जिसमें फैंटम का किरदार बिली जेन ने निभाया।
कॉमिक्स में भारतीय चरित्र
अगर ली फॉक विश्व कॉमिक्स के पिता हैं, तो कॉमिक्स के भारतीयकरण का श्रेय जाता है अनंत पै को। अनंत पै का हाल में देहांत हुआ। उनको श्रेय जाता है अमर चित्र कथा की शुरुआत का। जिस समय देश में लोकप्रिय कॉमिक्स की शुरुआत हुई, उस समय वे कॉमिक्स का प्रकाशन करने वाले एक संस्थान में नौकरी कर रहे थे। उन्होंने कॉमिक्स चरित्रों के चढ़ते जादू को बड़े करीब से देखा था। उनके मन में भी कुछ नया करने को कुलबुला रहा था। लेकिन क्या? इसका आइडिया भी उनको एक दिन अपने आप मिल गया।
बात 1967 की है। वे दूरदर्शन द्वारा आयोजित एक क्विज शो में भाग लेने गए थे। वहां उन्होंने देखा कि बच्चे ग्रीक मिथकों से जुड़े सवालों के जवाब तो बड़ी आसानी से दे रहे थे, लेकिन एक बच्चा इस सवाल का जवाब भी नहीं दे पाया कि रामायण की कथा में राम की मां का नाम क्या है? उसी दिन उन्होंने तय कर लिया कि क्या करना है।
नौकरी से इस्तीफ़ा देकर उन्होंने अमर चित्र कथा की बुनियाद डाली। उन्होंने निश्चय किया कि चित्रों भरी कहानी के माध्यम से वे प्रसिद्ध मिथक कथाओं, लोककथाओं, ऐतिहासिक व्यक्तित्वों, चरित कथाओं को किशोरों के लिए सरल-सहज रूप में प्रस्तुत करेंगे। वे शिक्षाविद भी थे और उनको लगता था कि अगर बच्चों को कॉमिक्स के काल्पनिक चरित्रों के स्थान पर मिथक-इतिहास की कथाओं से परिचित कराया जाए तो उससे अपनी संस्कृति में उनकी जड़ें गहरी जमेंगी। उन्हें अपने समृद्ध अतीत का अहसास होगा।
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