सोमवार, 4 अप्रैल 2011

छुटकी चिड़िया

एक थी छुटकी चिड़िया। बहुत तेज़-तर्रार। बेहद फुर्तीली। चौकस और आत्मविश्वासी। छुटकी अपने चंचल स्वभाव के कारण पूरे जंगल में जानी जाती थी। उस पर हर समय उड़ने का जुनून सवार रहता था। तेज़ उड़ने में वह हमेशा किसी न किसी के साथ होड़ लगाती रखती थी।

तेज़ उड़ने की प्रतियोगिता में छुटकी जंगल के अधिकतर पक्षियों को हरा चुकी थी। कौआ, कोयल, कबूतर, तोता और मैना जैसे न जाने कितने पक्षी उससे मात खा चुके थे। कौआ तो आज भी उस दिन को नहीं भूल पाता, जब छुटकी चिड़िया से रेस में हारकर वह लड़खड़ाता हुआ ज़मीन पर गिरा था। वो तो अच्छा हुआ कि कोयल रानी ने समय पर उसे देख लिया। नहीं तो हांफते-फड़फड़ाते उसकी वहीं पर जान निकल जाती। तोता-मैना ने तो मिलकर छुटकी चिड़िया को हराने की योजना बनाई थी। मैना ने तोते से कहा था कि मैं छुटकी को बातों में उलझा लूंगी और तुम मौका पाकर उससे आगे निकल जाना। लेकिन छुटकी की एकाग्रता, मेहनत और आत्मविश्वास के आगे उनकी योजना धरी की धरी रह गई।
अब तो वह सब की प्यारी-दुलारी जंगल की रानी बन गई थी। उसका खुद पर विश्वास भी दोगुना हो गया था। अपनी प्रशंसा सुन-सुनकर अब वह अपने पर घमंड करने लगी थी। एक दिन छुटकी अपने ही ख्यालों में एक डाली से दूसरी डाली पर फुदक रही थी। तभी उसे लगा जैसे कोई पक्षी सर्ररर.. से उसके पास से उड़कर आगे निकल गया है। छुटकी को यह बिलकुल भी अच्छा न लगा। वह सोचने लगी, ‘ मुझ जैसी तेज़-तर्रार उड़नपरी को कौन चकमा दे सकता है!! शायद उसे मेरी उड़ने की काबिलियत का पता नहीं। मुझे उसे सबक सिखाना चाहिए।’
इतना सोचकर वह उस पक्षी के पीछे उड़ पड़ी। वह पहचान ही नहीं पा रही थी कि आखिर यह पक्षी कौन है? अब उसने उड़ान थोड़ी और तेज़ की और उस पक्षी के बिलकुल पास पहुंच गई। परंतु यह या? उसकी सांसें गले में अटक कर रह गईं। वह पक्षी बाज़ था। आत्मविश्वास में अंधी छुटकी चिड़िया ने आज तो अपनी जान जोखिम में डाल ही दी थी। जब तक बाज सतर्क होता, वह तेज़ी से उड़कर झाड़ियों में छुप गई। बड़ी मुश्किल से उसकी जान बची। इससे छुटकी चिड़िया को अच्छा सबक मिला।
अतिआत्मविश्वासी होना ठीक नहीं। हमें हर कदम सोच-समझकर उठाना चाहिए।

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