मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

राजा का दुश्मन उसे आश्रम ले गया क्योंकि....

राजा वन में घुमते हुए अपना रास्ता भटक गया। वह भुख-प्यास के कारण बेहाल था। उसे घने जंगल में एक आश्रम दिखाई दिया। वहां मुनि का वेष बनाये एक राजा रहता था। जिसका देश प्रतापभानु ने छीन लिया था और जो सेना छोड़कर युद्ध से भाग गया था। इससे वह न तो घर गया और अभिमानी होने के कारण राजा प्रतापभानु से ही नहीं मिला। गुस्से के कारण वह युं ही गरीबों की तरह दिन बीताने लगा। राजा उसी के पास गया। उसने तुरंत पहचान लिया कि यह प्रतापभानु है। राजा प्यासा होने के कारण उसे पहचान ना सका।
सुन्दर वेष देखकर राजा ने उसे महामुनि समझा और घोड़े से उतरकर नमस्कार किया। राजा को प्यासा देखकर उसने सरोवर दिखला दिया। राजा ने घोड़े सहित उसमें स्नान और जलपान किया। सारी थकावट मिट गई। तब तपस्वी उसे अपने आश्रम में ले गया और सूर्यास्त का समय जानकर उसने आसन दिया। फिर वह तपस्वी राजा से बोला तुम कौन हो? सुन्दर युवक होकर, जीवन की परवाह किए बिना वन में अकेले क्यों फिर रहे हो? तुम्हारे चक्रवर्ती राजा जैसे लक्षण देखकर मुझे बहुत दया आ गई। तब राजा बोला प्रतापभानु नाम का एक राजा है, मैं उसका मंत्री हूं। शिकार के लिए घुमते हुए मैं अपना रास्ता भटक गया हूं। बहुत भाग्य से मुझे आपके आश्रम का रास्ता मिला है।इससे जान पड़ता है कि कुछ भला होने वाला है। तब मुनि ने कहा अंधेरा हो गया है आपका शहर यहां से सत्तर योजन की दूरी पर है। इसलिए आप रात को यहीं विश्राम करें और सुबह होते ही चले जाएं।

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