मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

पांडव अपना धन वापस ले जाने लगे तो क्या किया दुर्योधन ने?

धृतराष्ट्र ने पाण्डवों को अपनी धनराशि ले जाने की अनुमति दे दी,यह सुनते ही दु:शासन अपने बड़े भाई दुर्योधन के पास गए और बड़े दुख के साथ कहा भैया हमने अपना सारा पांडवों से मुश्किल से जीता धन खो दिया। सब धन हमारे दुश्मनों के हाथ में चला गया।
अभी कुछ सोच-विचार करना हो तो कर लो। यह सुनते ही दुर्योधन ने कर्ण और शकुनि ने आपस में सलाह की और सभी एक साथ धृतराष्ट्र के पास गए। उन्होंने बहुत विनम्रता से कहा हे राजन हम इस समय पांडवों से धन पाकर ही राजाओं को खुश कर लेते तो हमारा क्या नुकसान था। देखिए डसने के लिए तैयार सांपो को छोडऩा बेवकूफी है। इस समय पांडव भी सांपों के समान ही है।
वे जिस समय रथ में बैठकर शस्त्रों पर सुसज्जित होकर हम पर हमला कर देंगे तो हम में से किसी को नहीं छोड़ेंगे। अब वे सेना एकत्रित करने में लग गए हैं। द्रोपदी की भरी सभा में जो बेइज्जती हुई है। उसे पांडव भूला नहीं पाएंगे। इसलिए हम वनवास की शर्त पर पांडव के साथ फिर से जूआ खेलेंगे। इस तरह वो हमारे वश में हो जाएंगे। जूए में जो भी हार जाए, हम या वे बारह वर्ष तक मृग चर्म पहनकर वन में रहे। किसी को पता ना चले की वे पांडव हैं। यदि पता चल जाए कि ये कौरव या पांडव हैं तो फिर बारह वर्षो तक वन में रहें। इस शर्त पर आप जूआ खेलने की आज्ञा दें। पासे डालने की विद्या में हमारे मामा शकुनि निपूण है। अगर पांडव यह शर्त पूरी कर लेंगे तो भी इतने समय में बहुत से राजाओं को अपना दोस्त बना लेंगें। धृतराष्ट्र ने हामी भर दी। उन्होंने कहा बेटा अगर पांडव दूर चले गए हों तब भी उन्हें दूत भेजकर बुलवा लो।

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