सोमवार, 4 अप्रैल 2011

मां के प्यार का मोल

एक शाम की बात है। ग्यारह वर्षीय गुड्डू रसोई में अपनी मां के पास पहुंचा जो खाना पका रही थी। गुड्डू ने मां को कागज का एक टुकड़ा दिया और चुपचाप बाहर निकल गया। मां ने काम निपटाने के बाद अपने हाथ सुखाए और उस कागज को पढ़ना शुरू किया। कागज पर लिखा था: मुझे हर सप्ताह अपने काम का शुल्क चाहिए जो मैं करता हूं। बगीचे की सफाई के 50 रुपए, कमरे की सफाई के 10 रुपए, बाजार जाने के 10 रुपए, छोटे भाई को खिलाने के 10 रुपए, अच्छे नंबरों से पास होने के 20 रुपए। कुल मिलाकर 100 रुपए।
मां ने कागज पढ़कर बेटे की ओर देखा जो बाहर बरामदे में खड़ा था। उसने कुछ क्षण सोचने के बाद कलम उठाई और कागज की पिछली ओर लिखा - नौ महीने तुम्हें गर्भ में पालने का कोई शुल्क नहीं, तुम्हारी बीमारी में अनगिनत रातों तक जागकर देखभाल करने और प्रार्थना करने का कोई शुल्क नहीं, इतनी उम्र तक तुम्हें पालने-पोसने, पढ़ाने-लिखाने का भी कोई शुल्क नहीं। तुृम्हारे लिए खिलौने, खाना, कपड़े का इंतजाम और यहां तक कि तुम्हारी बहती नाक पोंछने का काम भी मैंने निशुल्क ही किया है।
मेरे प्यारे गुड्डू तुम्हारे प्रति मेरे प्यार और स्नेह का कोई मूल्य नहीं है। इसकी कीमत बदले में मुझे मिलने वाला तुम्हारा प्यार है, बस और कुछ नहीं। गुड्डू ने जब कागज पर लिखी यह इबारत पढ़ी तो उसकी आंखें भर आईं। वह सीधा अपनी मां के पास गया और उससे लिपटकर माफी मांगी।
सबक: हम तब तक अपने जीवन में माता-पिता की भूमिका नहीं समझ पाते, जब तक कि खुद माता-पिता नहीं बन जाते। जीवन में हर चीज को पैसे से नहीं आंका जा सकता। कुछ रिश्ते अनमोल होते हैं।

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