रविवार, 17 अप्रैल 2011

और राजा ब्राह्मणी के आगे नतमस्तक हो गए

पंडित श्रीरामनाथ कृष्णनगर के बाहर एक कुटिया में अपनी पत्नी के साथ रहते थे। एक दिन जब वे विद्यार्थियों को पढ़ाने जा रहे थे, उनकी पत्नी ने उनसे कहा - भोजन क्या बनेगा? घर में एक मुट्ठी चावल ही हैं। पंडितजी ने पत्नी की ओर देखा और बिना कोई उत्तर दिए चले गए। भोजन के समय जब उन्होंने थाली में थोड़े-से चावल और उबली हुई कुछ पत्तियां देखीं तो पत्नी से पूछा - भद्रे, यह स्वादिष्ट शाक किसका है? पत्नी बोली - मेरे पूछने पर आपकी दृष्टि इमली के वृक्ष की ओर गई थी। मैंने उसी के पत्तों का शाक बनाया है। पंडितजी ने बड़ी ही निश्चिंतता से कहा - इमली के पत्तों का शाक इतना स्वादिष्ट होता है। तब तो हमें भोजन की कोई चिंता ही नहीं रही। जब कृष्णनगर के राजा शिवचंद्र को पंडितजी की गरीबी का पता चला तो उन्होंने पंडितजी के सामने नगर में आकर रहने का प्रस्ताव रखा, किंतु उन्होंने इनकार कर दिया। तब महाराज ने स्वयं उनकी कुटिया में जाकर उनसे पूछा - आपको किसी चीज का अभाव तो नहीं? पंडित बोले - यह तो घरवाली ही जाने। तब महाराज ने कुटिया में जाकर ब्राह्मण की पत्नी से पूछा। वह बोली - राजन! मेरी कुटिया में कोई अभाव नहीं। मेरे पहनने का वस्त्र अभी इतना नहीं फटा कि उपयोग में न आ सके। जल का मटका अभी तनिक भी फूटा नहीं है और फिर मेरे हाथ में जब तक चूड़ियां बनी हुई हैं, मुझे क्या अभाव। राजा उस देवी के समक्ष श्रद्धा से झुक गए। वस्तुत: सीमित साधनों में ही संतोष की अनुभूति हो तो जीवन आनंदमय हो जाता है।
भास्कर न्यूज

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