शुक्रवार, 6 मई 2011

भागवत २४८

बुरी नजर ना डालें क्योंकि...
पं.विजयशंकर मेहता
राजा नृग के चले जाने पर श्रीकृष्ण ने अपने कुटुम्ब के लोगों से कहा-जो लोग अग्नि के समान तेजस्वी हैं, वे भी ब्राह्मणों का थोड़े से थोड़ा धन हड़पकर नहीं पचा सकते। फिर जो अभिमानवश झूठमूठ अपने को लोगों का स्वामी समझते हैं वे राजा तो क्या पचा सकते हैं? मैं हलाहल विष को नहीं मानता, क्योंकि उसकी चिकित्सा होती है। वस्तुत: ब्राह्मणों का धन ही परम विष है, उसको पचा लेने के लिए पृथ्वी में कोई औषध, कोई उपाय नहीं है।
ब्राह्मण के धन का अर्थ किसी जाति विशेष की सम्पत्ति ही न समझी जाए। जिस किसी का ईमानदारी से कमाया धन है उस पर बुरी नजर न डाली जाए। श्रीकृष्ण ने जो उपदेश यहां दिया उसके आध्यात्मिक अर्थ भी हैं। यह शरीर, इन्द्रियां और प्राण तत्व जाने अनजाने भूल कर जाते हैं। इनका उपयोग साधक को करना आना चाहिए।
ज्ञानेन्द्रिय में कान को लिया जाए उसका विषय है शब्द, देवता, उसके दिशा हैं और उनका तत्व आकाश है। त्वचा का विषय शब्द देवता वायु, तत्व वायु है। नेत्र का विषय रूप, देवता सूर्य और तत्व अग्नि है। जीभ का विषय रस, देवता वरुण, तत्व आकाश है। नाक विषय गंध, देवता अश्वनीकुमार व तत्व पृथ्वी हैं। ये पाचों इन्द्रियां तमोगुण वाली हैं।
कमेन्द्रिय में वाणी, पांव, गुदा व उपस्थ है-जिनके विशय क्रमश: बोलना, ग्रहण करना, चलना, मलत्याग, मूत्र त्याग हैं और इनके देवता भी क्रमश: अग्नि, इन्द्र, विष्णु, मृत्यु व प्रजापति है। इनके तत्व आकाश, वायु, अग्नि, पृथ्वी व जल, क्रमानुसार माने गए हैं।
इन्द्रिय लक्षणों की बनावट पांच तत्वों से हुई-यथा आकाष से शब्द, श्रवणेन्द्रियभव व इन्द्रियों के छिद्र उत्पन्न हुए। वायु से स्पर्श, चेष्टा व चर्म उत्पन्न हुए। अग्नि से रूप, नेत्र और ज्योति उत्पन्न हुई। जल से रस, जिव्हा, स्नेह व शीतलता उत्पन्न हुए, पृथ्वी से गंध, घ्राणेन्द्रिय और शरीर के केश, अस्थि, हाथ, पैर, सिर, कमर, गर्दन आदि सब बने।

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