रविवार, 8 मई 2011

पत्थर की मुर्ति कर रही थी स्पर्श का इंतजार क्योंकि...

मुनि आश्रम आने के बाद उन्होंने कहा श्री रामजी ने उनसे कहा आप निडर होकर यज्ञ कीजिए। यह समाचार जब मारिच को मिला की रामजी विश्वामित्र के हवन की रक्षा कर रहे हैं तो वह अपने सहायकों को लेकर वहां पहुंच गया। रामजी ने बिना फल वाला बाण उसको मारा। जिससे वह समुद्र के पार जाकर गिरा। फिर सुबाहु ने अग्रिबाण चलाया। इधर छोटे भाई लक्ष्मण ने राक्षसों की सेना का संहार किया।
स तरह रामजी कुछ दिन और रहकर ब्राह्मणों को निडर कर दिया। मुनि ने रामजी से वहां से चलने को कहा। दोनों भाई और विश्वामित्र वहां से चल पड़े। मार्ग में एक आश्रम दिखाई दिया। वहां पशु-पक्षी कोई भी जीव जन्तु नहीं था। पत्थर की एक शिला देखकर प्रभु ने पूछा कि मुनि श्री इस शिला की कथा सुनाईये। तब उन्होंने यह कथा सुनाई।
गौतम मुनि की पत्नी अहिल्या शापवश पत्थर की देह धारण कि ए बड़े ही धीरज से आपके चरणकमलों की धूलि चाहती है। इस कृपा कीजिए।रामजी के चरणों का स्पर्श पाते ही सचमुच वह तपोमुर्ति अहिल्या प्रकट हो गई। उनका शरीर पुलकित हो गया। उनके मुंह से शब्द नहीं निकल पा रहे थे। अहिल्या प्रभु के चरणों से लिपट गई।

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