शुक्रवार, 13 मई 2011

अगर जीवन में भरपूर सुख और मंगल चाहते हैं तो....

पं. विजयशंकर मेहता
जीवन में मंगल और शुभ की तलाश सभी को रहती है। अमंगल को आमंत्रण कोई नहीं देना चाहता। हनुमान चालीसा के समापन पर तुलसीदासजी ने हनुमानजी को मंगल के रूप में याद किया है।

पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप।।


हे पवनसुत! आप सारे संकटों को दूर करने वाले साक्षात् कल्याण स्वरूप हैं। आप भगवान श्रीराम, लक्ष्मणजी और सीताजी के साथ मेरे हृदय में निवास करें। श्री हनुमान चालीसा का आरंभ 'श्रीगुरु चरन सरोज रज' से हुआ है और अंत 'हृदय' पर हुआ है।
गुरु के चरण-रज से मन को साफ करें, क्योंकि परमात्मा को बसाने के लिए एकमात्र स्थान है हृदय। हृदय से स्वभाव बनता है और मस्तिष्क से व्यवहार बनता है। बाहरी संसार मनुष्य के व्यवहार से संचालित होता है और भीतरी जगत् (आध्यात्मिक) मनुष्य के स्वभाव से नियंत्रित होता है। पहली श्रेणी में वे लोग होते हैं जो व्यवहार से स्वभाव को बनाते हैं। दूसरी श्रेणी में ऐसे लोग होते हैं जो स्वभाव से व्यवहार बनाते हैं। ज्ञान, कर्म, उपासना, अपनी नौकरी, व्यवसाय, समाज, परिवार में दोनों ही प्रकार के लोग अलग-अलग परिणाम देते हैं।
पहली श्रेणी के लोग कुशल होते हैं, किन्तु उनके कार्यकलाप कहीं न कहीं स्वार्थ से प्रेरित होंगे। दूसरी श्रेणी के लोग सर्वप्रिय रहेंगे और उनकी कार्यशैली में मूलरूप से ईमानदारी रहेगी। ऐसे लोग स्वयं का मंगल करेंगे तथा दूसरों का भी कल्याण करेंगे। इनका हर काम शुभ और जनहितकारी होगा। आप दूसरों के संकट तभी हर सकते हैं जब आपके भीतर शुभ करने की वृत्ति हो। इसलिए अपना स्वभाव साधें। इसके लिए एक काम जरूर करें जरा मुस्कराइए...।

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