शुक्रवार, 13 मई 2011

और राजकुमारी ने कह दी अपने दिल की बात

इन्द्र की आज्ञा से नल ने राजमहल में बिना रोक टोक के प्रवेश किया। दमयन्ती और उसकी सहेलियां भी उसे देखकर मुग्ध हो गयी और लज्जित होकर कुछ बोल न सकी। तुम देखने में बड़े सुंदर और निर्दोष जान पड़ते हो। पहले यहां आते समय द्वारपालों ने तुम्हे देखा क्यों नहीं? उनसे तनिक भी चूक हो जाने पर मेरे पिता बहुत कड़ा दण्ड देते हैं। नल ने कहा- मैं नल हूं। लोकपालों का दूत बनकर तुम्हारे पास आया हूं।
सुन्दरी ये देवता तुम्हारे साथ विवाह करना चाहते हैं। तुम इनमें से किसी एक देवता के साथ विवाह कर लो। यही संदेश लेकर मैं तुम्हारे पास आया हूं। उन देवताओं के प्रभाव से जब मैंने तुम्हारे महल में प्रवेश किया तो मुझे कोई देख नहीं पाया। मैंने तुमसे देवताओं का संदेश कह दिया है अब जो कहना है कह दो। अब तुम्हारी जो इच्छा हो करो।
दमयन्ती ने बड़ी श्रृद्धा के साथ देवताओं को प्रणाम करके मन्द मुस्कान के साथ कहा स्वामी मैं तो आपको ही अपना सर्वस्व मानकर अपने आप को आपके चरणों में सौंपना चाहती हूं। जिस दिन से मैंने हंसों की बात सुनी तभी से मैं आपके लिए व्याकुल हूं। आपके लिए ही मैंने राजाओं की भीड़ इकट्ठी की है। यदि आप मुझ दासी की प्रार्थना अस्वीकार कर देंगे तो मैं जहर खाकर मर जाऊंगी।
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