सोमवार, 9 मई 2011

हंस ने राजा से क्या वादा किया?

उनके आने पर युधिष्ठिर ने उनका बहुत आदर-सत्कार किया। उनके विश्राम कर लेने पर युधिष्ठिर अपना वृतांत सुनाने लगे। उन्होंने कहा कि महाराज कौरवो ने कपट बुद्धि से मुझे बुलाकर छल के साथ जूआ खेला और मुझ अनजान को हराकर मुझसे सब कुछ छीन लिया। इतना ही नहीं उन्होंने मेरी पत्नी द्रोपदी को घसीटकर भरी सभा में अपमानित किया।
तब बृहदश्व ने कहा आपका यह कहना ठीक नहीं है कि आपके जैसा दुखी राजा और कोई नहीं हुआ। यदि आप आज्ञा दें तो मैं आपको नल राजा की कहानी सुनाता हूं।
तब युधिष्ठिर ने कहा महाराज मुझे उनकी कथा सुनाकर धन्य कीजिए।निषध देश में वीरसेन के पुत्र नल नाम के एक राजा थे। बहुत सुन्दर और गुणवान थे। वे सभी तरह की अस्त्र विद्या में भी बहुत निपुण थे। उन्हें जूआ खेलने का भी थोड़ा शोक था। उन्हीं दिनों विदभग् देश में भीमक नाम के एक राजा राज्य करते थे। वे भी नल के समान ही सर्वगुण सम्पन्न थे। उन्होंने दमन ऋषि को प्रसन्न करके उनके वरदान से चार संतान प्राप्त की थी- तीन पुत्र और एक कन्या । पुत्रों के नाम थे दम,दान्त व दमन पुत्री का नाम था दमयन्ती। दमयन्ती लक्ष्मी के समान रूपवन्ती थी। बड़ी-बड़ी आंखे थी। उस समय देवताओं और यक्षों मे कोई भी कन्या इतनी रूपवती नहीं थी।
उन दिनों कितने ही लोग उस देश में आते और राजा नल से दमयन्ती के गुणों का बखान करते। एक दिन राजा नल ने अपने महल के उद्यान में कुछ हंसों को देखा। उन्होंने एक हंसे को पकड़ लिया। हंस ने कहा आप मुझे छोड़ दीजिए तो हम लोग दमयन्ती के पास जाकर आपके गुणों का ऐसा वर्णन करेंगे कि वह आपको जरूर वर लेगी।
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