मंगलवार, 5 जुलाई 2011

...और राजा दशरथ ने श्रीराम के राजतिलक की घोषणा कर दी

जब से रामजी विवाह करके घर आए, तब से अयोध्या में नित नए मंगल हो रहे हैं। नगर का ऐश्चर्य कुछ कहा नहीं जा सकता। पूरी अयोध्या की जनता सुखी है।एक बार की बात है। राजा के दशरथ अपने सिहांसन पर बैठे थे। राजा ने उस समय अपने हाथ में दर्पण ले लिया। उसमें अपना मुंह देखकर मुकुट सीधा किया। उन्होंने देखा कि कानों के पास के बाल सफेद हो गए हैं। मानों बुढ़ापा उपदेश दे रहा है कि रामजी को अब युवराज पद सौंप देना चाहिए। राजा ने अपने दिल की बात वसिष्ठजी को सुनाया।

राजा ने कहा- वसिष्ठजी रामजी अब सब प्रकार से योग्य है। अब मेरे मन में एक ही अभिलाषा है। वह भी आप के ही अनुग्रह से पूरी होगी। आप अगर आज्ञा दें तो तैयारी कि जाए। मेरे जीते जीये उत्सव हो जाए। अब मेरी सारी लालसा पूर्ण हो गई है। अब मेरे मन सिर्फ यही लालसा रह गई है। वसिष्ठजी ने उनकी बात सुनकर कहा-राजन् अब आप देर मत कीजिए। राजा खुश होकर महल में आये और उन्होंने सेवकों को बुलवाया और कहा अगर पंचों को मेरा मत सही लगे तो आप लोग श्रीराम का राजतिलक करें।

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