शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

ऐसे लोगों को ज्यादा सावधान रहना चाहिए...

भूल किससे नहीं होती। अनजाने में होती है और जानबूझकर भी की जाती है, लेकिन कर्म के साथ भूल का सिलसिला बना ही रहता है। कुछ लोगों की भूलें दूसरे ही उनको बताते हैं और कुछ लोग स्वयं उन्हें पकड़ लेते हैं।
जो अनजाने में गलती कर जाते हैं उनकी अबोध दशा तो माफ की जा सकती है लेकिन जो जानबूझकर गलत कर रहे हों और ऐसा समझकर कि यह हमारे हित के लिए है फिर भी करते रहें, उन्हें सावधान रहना चाहिए। लम्बे समय तक ऐसी गतिविधि भविष्य में बड़ा नुकसान पहुंचाएगी। जिस क्षण यह पता लगे कि हमसे गलती हो गई है और वह गलती किसी व्यक्ति या परिस्थिति से जुड़ी है तो फोरन क्षमा मांग ली जाए।
धर्म में इसे ही प्रायश्चित का बोध कहा गया है। प्रायश्चित का भाव केवल अफसोस नहीं होता, बल्कि दोबारा गलत काम न करने का संकल्प भी इसमें छुपा रहता है। गलत काम हो जाने पर जब हम क्षमा मांगने की तैयारी कर रहे होते हैं तब हमारा मन हमें रोकता है। इसके पीछे हमारा अहं काम कर रहा होता है। अहंकार को क्षमायाचना करने में बड़ी पीड़ा होती है।
अहंकार हमें समझाता है कि गलत काम करने के बाद यदि क्षमा मांगी गई तो लोग आपको कायर, निर्बल, मूर्ख समझेंगे। अहंकार कहता है बड़ी से बड़ी मुसीबत आ जाए उससे निपट लेंगे, पर गलती होने पर क्षमा मत मांगो। और यहीं से मनुष्य लगातार गलतियां करते चला जाता है। जीवन में प्रसन्नता और आनंद की जो संभावना होती है वह समाप्त होने लगती है।
हमारे और हमारी सफलता के बीच में ये गलतियां रुकावटें और बाधाएं बनकर स्थाई रूप बस जाती हैं। गलत के विरूद्ध लडऩे और संघर्ष करने की रूचि समाप्त हो जाती है। इसलिए पहली बात तो गलत करें न और यदि हो जाए तो प्रायश्चित से गुजरें। हो सकता है हर गलती एक सीख बन जाए।
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