शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

ब्राह्मण होकर भी क्षत्रिय की तरह क्यों थे परशुराम?

वैशम्पायनजी कहते हैं जन्मेजय उस सरोवर में स्नान करके महाराज युधिष्ठिर कौशि की नदी के किनारे होते हुए सभी तीर्थ स्थान में गए। उन्होंने समुद्र तट पर पहुंचकर गंगाजी के स्थान में मिली हुई पांच सौ नदियों की धारा से स्नान किया। इसके बाद वे समुद्र के किनारे-किनारे अपने भाइयों सहित कलिंग देश आए। वहां लोमेश जी कहने लगे यह कलिंगदेश है। यहां वैतरणी नदी बहती है। इस स्थान पर देवताओं का आश्रय लेकर खुद धर्मराज ने यज्ञ किया था। पाण्डवों ने द्रोपदी सहित वैतरणी नदी में उतरकर पितृतर्पण किया। इसके बाद वे महेन्द्रपर्वत पर गए। वहां एक रात निवास किया।वहां रहने वाले तपस्वीयों ने उनका बहुत सत्कार किया। लोमेश मुनि ने उन सभी ऋषियों का परिचय युधिष्ठिर को दिया। वीरवर ने परशुराम से पूछा भगवान परशुराम इन तपस्वीयों को किस समय दर्शन देंगे।
तपस्वीयों को उनका दर्शन चतुर्दशी और अष्टमी को होता है। आज की रात बीतने पर कल चर्तुदशी होगी तब आप भी उनके दर्शन कर लेना। युधिष्ठिर ने पूछा- आप परशुरामजी के सेवक है।उन्होंने पहले जो-जो कार्य किए थे वे सभी आपने प्रत्यक्ष देखे हैं। जिस प्रकार उन्होंने क्षत्रियों को परास्त किया था। तब अकृतव्रण ने कहा मैं तुम्हे परशुरामजी का चरित्र सुनाता हूं। उन्होंने है हद्यवंश के अर्जुन का वध किया था। तब उसके एक हजार भुजाएं थी। दतात्रेय की कृ पा से उन्हें एक सोने का विमान मिला था। उसकी गति को पृथ्वी पर कोई रोक नहीं सकता था। किसी समय कन्नौज नामक नगर में गाधि नाम का एक बलवान राजा था। वह वन में जाकर रहने लगा। वहां उसके एक कन्या उत्पन्न हुई। जो अप्सरा के समान सुंदर लगी थी। उसका नाम था सत्यवती। ऋचीक मुनि ने राजा के पास जाकर याचना की। राजा गाधि ने ऋचीक मुनि के साथ सत्यवती का ब्याह कर दिया। विवाहकार्य सम्पन्न हो जाने पर अपने पुत्र को पत्नी के साथ देखकर भृगु ऋषि बहुत खुश हुए। तब उन्होंने अपने पुत्रवधु को वर मांगने को कहा। तब उसने ससुरजी को प्रसन्न देखकर अपने और अपनी माता के लिए पुत्र की याचना की। तब भृगुजी ने कहा तुम और तुम्हारी माता दोनों ऋतुस्नान के बाद अलग-अलग वृक्षों से आलिंगन करना। वह पीपल का और तुम गुलर का आलिंगन करना।
इसके अलावा मैंने ये दो चरू तैयार किए हैं इनमें रखा पदार्थ तुम सावधानी पूर्वक खा लेना। जब बहुत दिन बाद वे लौटे तो उन्होंने जाना कि सत्यवती ने गलत वृक्ष का आलिंगन किया व गलत चरू की सामग्री का सेवन किया। यह देखकर उन्होंने कहा सत्यवती तुम्हारा पुत्र इसीलिए ब्राह्मण होकर भी क्षत्रिय के समान व्यवहार करेगा। तब सत्यवती ने बार-बार प्रार्थना की ओर कहा कि मेरा पुत्र ऐसा ना हो भले ही पौत्र ऐसे स्वभाव वाला हो जाए।

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