बुधवार, 13 जुलाई 2011

राजा ने ब्राह्मण को दान से मना किया तो...

इसी समय अंगदेश में महाराज दशरथ के मित्र राजा लोमपाद राज्य करते थे। हमने ऐसा सुना था कि उन्होंने किसी ब्राह्मण को कोई चीज देने की प्रतिज्ञा करने के बाद उसे मना कर दिया था। इसीलिए ब्राह्मणों ने उनको त्याग दिया। इससे उनके राज्य में वर्षा होनी बंद हो गई। प्रजा में हाहाकार मच गया।तब उन्होंने ब्राह्मणों से उपाय पूछा कि आप ही लोग बताइये। सभी उपाय सोचने में लग गए। वे सब अपना मत प्रकट करने लगे। तब उनमें से एक ने कहा राजा ब्राह्मण आप पर कुपित है। इसका आप प्रयाश्चित कीजिए।
ऋषिश्रृंग नाम के एक मुनिकुमार है। वे वन में ही रहते हैं और बहुत सरल स्वभाव के हैं। उन्हें स्त्री जाति के बारे में तो पता ही नहीं है। उन्हें आप अपने देश में बुला लीजिए। वे यदि यहां आ गए तो तुरंत वर्षा होने लगेगी। यह सुनकर राजा ने लोमपाद ने अपने अपराध का प्रायश्चित करवाया। उनके प्रसन्न होने पर उन्होंने अपने राज्य के मंत्रियों की सलाह से राज्य की प्रधान वैश्याओं को बुलवाया और कहा सुन्दरियों तुम जाओ और किसी तरह मोहित करके ऋषि श्रृंग को मेरे राज्य में ले आओ।
तब वैश्या ने राजा से कहा मैं अपने तपोधन से ऋषिश्रृंग को लाने का प्रयत्न करुंगी। उसके बाद उस वृद्धा ने अपनी बुद्धि के अनुसार नौका पर एक आश्रम तैयार किया। उस आश्रम को उसने बनावटी फूल व फल से सजाया। उसने विभाण्डक मुनि के आश्रम से कुछ दूरी पर जाकर गुप्तचरों को बोला जाओ पता लगाकर आओ मुनि विभाण्डक किस समय आश्रम से बाहर जाते हैं। उसके बाद उसने अपनी पुत्री वैश्या को सब बात समझाकर ऋषिश्रृंग के पास भेजा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें