31 दिसंबर की रात युवाओं के बीच शराब पानी की तरह बहेगी। देश का युवा अपने हाथों अपने आपको बर्बाद करेगा। यह समझना गलत है कि शराब पीने के दुष्परिणाम केवल वही भुगतता है। दरअसल इस लत का खामियाजा पूरे परिवार और बाद में पूरे समाज को उठाना पड़ता है। पूरे जीवन को प्रभावित करने वाली लत की शुरुआत भी इन्हीं पार्टियों से होती है।
यह तो हम सभी जानते हैं कि शराबखोरी एक बीमारी है जिसका इलाज किया जा सकता है, लेकिन बहुत कम लोग इसे स्वीकार करेंगे कि यह एक 'पारिवारिक बीमारी' है।
अधिक शराब का सेवन हर तरह से खतरनाक है। इससे लीवर सिरोसिस (जिगर का सिकुड़ना) जैसी जानलेवा बीमारी के शिकार होने की संभावना रहती है। विदेशी सर्वेक्षणों का सहारा लेकर कई डॉक्टर यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि प्रतिदिन 60 एमएल शराब का सेवन किया जा सकता है, लेकिन भारतीय परिस्थितियों में यह अत्यंत हानिकारक है। यहाँ सप्ताह में एक या दो दिन से अधिक शराब का सेवन हानिकारक है। भारत पश्चिम की अपेक्षा अधिक गर्म देश है, इसलिए यहाँ कोशिश करनी चाहिए कि सप्ताह में 60 एमएल से अधिक शराब का सेवन न किया जाए।
शराब के अधिक सेवन की वजह से जिगर क्षतिग्रस्त होने लगता है। बार-बार क्षतिग्रस्त होने के कारण जिगर में रेशा (फाइब्रोसिस) बनने लगता है जिससे जिगर सिकुड़ने लगता है। उसमें छोटी-बड़ी गाँठ पड़ जाती है। यह लीवर सिरोसिस है। यदि लीवर में सिर्फ सूजन आए, लेकिन रेशे में न बदले तो उस अवस्था को हेपेटाइटिस कहा जाता है।
शराबखोरी न केवल आर्थिक रूप से खोखला करती है बल्कि आंतरिक और रूहानी तौर पर भी दिवालिया बना देती है। अक्सर देखा गया है कि शराबखोरी की लत में जकड़े व्यक्ति के परिवार के 2-4 सदस्य भी शारीरिक तौर पर इससे प्रभावित हो जाते हैं। अधिकांश मामलों में शराबखोर की पत्नी को सबसे अधिक शारीरिक प्रताड़ना झेलना पड़ती है, साथ ही बच्चे भी कमोबेश पिता की मारपीट के शिकार हो जाते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने माना है कि यह आनुवांशिक बीमारी है। आमतौर पर देखा गया है कि शराबखोर किसी न किसी तरह की मानसिक समस्या से पीड़ित पाए जाते हैं। वे जीवन में एकाकी और असफल व्यक्ति के तौर पर पहचाने जाते हैं।
आप चाहें तो खुद नीचे दिए गए प्रश्नों को पूछकर तय कर सकते हैं कि आप शराबखोरी के किस निचली पायदान तक उतर आए हैं।
क्या आपने कभी एक हफ्ते के लिए शराब छोड़ने का प्रण लिया है और दो-तीन दिन में ही इस कसम से तौबा कर ली है?
क्या कभी आपने यह ख्वाहिश की है कि लोगों को अपने काम से काम रखना चाहिए और शराब छोड़ने के लिए बार-बार टोका-टाकी बंद कर देना चाहिए?
NDक्या बीते साल में आपको शराब पीने से कोई शारीरिक समस्या का सामना करना पड़ा है?
क्या आपकी शराबखोरी से घर-परिवार में कोई समस्या खड़ी हुई है?
क्या आपने किसी पार्टी में 'एक्स्ट्रा' ड्रिंक पीने की जरूरत समझी है, क्योंकि आप समझते हैं आपको पर्याप्त नशा नहीं हुआ है?
क्या आपको लगता है कि आप कभी भी शराब छोड़ देंगे, पर फिर भी शराब पीते रहते हैं?
क्या आप शराबखोरी की लत के चलते अक्सर ऑफिस या वर्क प्लेस पर लापरवाही करते हैं?
क्या आपने कभी इस आशा में कि आप नशे में न दिखाई दें, किसी दूसरी तरह के पेय का सहारा लिया है?
क्या बीते सालभर से सुबह उठकर आँख खोलने के लिए किसी आई ओपनर के सहारे की जरूरत पड़ी है?
क्या आपको ऐसे लोगों से रश्क होता है जो खूब शराबखोरी करते हैं और मुसीबत में भी नहीं पड़ते?
क्या आपने कभी ऐसा सोचा है कि मेरी जिंदगी और बेहतर होती यदि मैं शराब नहीं पी रहा होता?
यह तो हम सभी जानते हैं कि शराबखोरी एक बीमारी है जिसका इलाज किया जा सकता है, लेकिन बहुत कम लोग इसे स्वीकार करेंगे कि यह एक 'पारिवारिक बीमारी' है।
अधिक शराब का सेवन हर तरह से खतरनाक है। इससे लीवर सिरोसिस (जिगर का सिकुड़ना) जैसी जानलेवा बीमारी के शिकार होने की संभावना रहती है। विदेशी सर्वेक्षणों का सहारा लेकर कई डॉक्टर यह साबित करने की कोशिश करते हैं कि प्रतिदिन 60 एमएल शराब का सेवन किया जा सकता है, लेकिन भारतीय परिस्थितियों में यह अत्यंत हानिकारक है। यहाँ सप्ताह में एक या दो दिन से अधिक शराब का सेवन हानिकारक है। भारत पश्चिम की अपेक्षा अधिक गर्म देश है, इसलिए यहाँ कोशिश करनी चाहिए कि सप्ताह में 60 एमएल से अधिक शराब का सेवन न किया जाए।
शराब के अधिक सेवन की वजह से जिगर क्षतिग्रस्त होने लगता है। बार-बार क्षतिग्रस्त होने के कारण जिगर में रेशा (फाइब्रोसिस) बनने लगता है जिससे जिगर सिकुड़ने लगता है। उसमें छोटी-बड़ी गाँठ पड़ जाती है। यह लीवर सिरोसिस है। यदि लीवर में सिर्फ सूजन आए, लेकिन रेशे में न बदले तो उस अवस्था को हेपेटाइटिस कहा जाता है।
शराबखोरी न केवल आर्थिक रूप से खोखला करती है बल्कि आंतरिक और रूहानी तौर पर भी दिवालिया बना देती है। अक्सर देखा गया है कि शराबखोरी की लत में जकड़े व्यक्ति के परिवार के 2-4 सदस्य भी शारीरिक तौर पर इससे प्रभावित हो जाते हैं। अधिकांश मामलों में शराबखोर की पत्नी को सबसे अधिक शारीरिक प्रताड़ना झेलना पड़ती है, साथ ही बच्चे भी कमोबेश पिता की मारपीट के शिकार हो जाते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने माना है कि यह आनुवांशिक बीमारी है। आमतौर पर देखा गया है कि शराबखोर किसी न किसी तरह की मानसिक समस्या से पीड़ित पाए जाते हैं। वे जीवन में एकाकी और असफल व्यक्ति के तौर पर पहचाने जाते हैं।
आप चाहें तो खुद नीचे दिए गए प्रश्नों को पूछकर तय कर सकते हैं कि आप शराबखोरी के किस निचली पायदान तक उतर आए हैं।
क्या आपने कभी एक हफ्ते के लिए शराब छोड़ने का प्रण लिया है और दो-तीन दिन में ही इस कसम से तौबा कर ली है?
क्या कभी आपने यह ख्वाहिश की है कि लोगों को अपने काम से काम रखना चाहिए और शराब छोड़ने के लिए बार-बार टोका-टाकी बंद कर देना चाहिए?
NDक्या बीते साल में आपको शराब पीने से कोई शारीरिक समस्या का सामना करना पड़ा है?
क्या आपकी शराबखोरी से घर-परिवार में कोई समस्या खड़ी हुई है?
क्या आपने किसी पार्टी में 'एक्स्ट्रा' ड्रिंक पीने की जरूरत समझी है, क्योंकि आप समझते हैं आपको पर्याप्त नशा नहीं हुआ है?
क्या आपको लगता है कि आप कभी भी शराब छोड़ देंगे, पर फिर भी शराब पीते रहते हैं?
क्या आप शराबखोरी की लत के चलते अक्सर ऑफिस या वर्क प्लेस पर लापरवाही करते हैं?
क्या आपने कभी इस आशा में कि आप नशे में न दिखाई दें, किसी दूसरी तरह के पेय का सहारा लिया है?
क्या बीते सालभर से सुबह उठकर आँख खोलने के लिए किसी आई ओपनर के सहारे की जरूरत पड़ी है?
क्या आपको ऐसे लोगों से रश्क होता है जो खूब शराबखोरी करते हैं और मुसीबत में भी नहीं पड़ते?
क्या आपने कभी ऐसा सोचा है कि मेरी जिंदगी और बेहतर होती यदि मैं शराब नहीं पी रहा होता?